ईश्वर साक्षात्कार भाग - 1 | Ishwar Sakshatkar Bhag-i

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Ishwar Sakshatkar Bhag-i by श्रीपाद दामोदर सातवळेकर - Shripad Damodar Satwalekar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न सच छोग फ्दा चादते हू है (३) यदि सचमुच उन का दु स्व बढेगा» ऐसा उन का रिश्वास दोता, सो थे इतना प्यय, इतना अयरन भौर इतना बघ क्यों करेंगे ? इसलिये उन के ये मयन मी नि संदेह सुख्प्रा्ति के लिये दो हैं । उन का मार सशुद्ध दोगा, चर उन थे मन में ऐसा दी निश्चय हैं । इस राप्ट के भन्दर देखते है कि पक जाति दूसरी जाति को दुवाने का यान कर रदी हैं, थोडेसे कारण के टिये रडमरने के ल्ये सैयार दोती है, इतना ही नहीं, पर अल्पस्वत्प कारण से ही फ्सिद भी मचाती है। इस कारण पुक रा टू की जनता में भी एकता नहीं हे। उस जाति के नेताओं से भूच्छा जाय कि, तुम लोग देसा क्‍यों करते हो, सो ये ऐसाई। उत्तर देंगे थि, इम यहा सुखसे रहना चाहते है, इसलियि ऐसा यरते हैं । अर्थात्‌ थे सुखमापति के छिये दी फिसाद सचति हैं ' उनका मार्ग गरत दो, पर दिल्‍से थे ऐसा ही समझते है कि, ऐसा करने से हमारा सुग्ड शयद्थ यदेंगा ! प्राय श्रयेक राप्टू में ऐसी पिसाद मचम्नेयाटी जातिया हैं और बे सच अपने सुग्व के टिये फिसाद मवाती है, इससे उनको सुख मिठता फू था नदी, इस फ्पिय में हम चुद वह नददीं सकते, पर उनका विश्वास तो यद्दी है कि, इससे उनको गसण्ड सुख माप्त होगा । -जातीय झगझे में, दगेफिसाड़ों मे एक दूसरे का गटा घटना, एवं दूसरे के पेट में शुर्रा घुसेडना, एव दूसरे के सकान जाना शादि सय प्रकार के बत्यायार भाति है । इन फ्मसादों में टीनों शोर का चड़ा जुक्सान होता है, यह सय दे देखते है, शलुभय करते है, पर समझते है दि, इससे भषपनी जाति का सुख यढेगा। दूसरी जाति के लोग अधिक मरें, दूसरी जाती के मफान भपिक जलें, तो यद्द दिध्यर्स देखकर उनको ऐसा आनद होता है हरि, शायद सचमुच अपनी जातिवी ठनति होने से मी उतना न हो यह लय सपना सुख बढाने के टिये सानययाणी कर रहे है, भर इसी में श्ह




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