दादा की नज़र से लोकनीति | Dada Ki Nazar Se Lokneeti
श्रेणी : दार्शनिक / Philosophical
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
86
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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( १, )
किस तरफ है ? राज्यसत्ता तो रहेगी नहीं, और छोकसत्ता भी नहीं
रहेगी। उस तरफ को कदम बढ़ाना है, पर दिशा कौन-सी है ?
{ववाद् का जड
आज यृगोस्खवियामं ओर ख्स मै जोःविवादहोरहाषै,
वह असरु मँ यह कह कि एक कहता है-राज्यसत्ता
को विलीनीकरण की तरफ कदम बढ़ाना चाहिए । दसरा
कहता है कि राज्यसत्ता जब तक पूरी हाथ में नहीं होगी,
तब तक विलीनीकरण केसे करेंगे ? यह॑ समझने की वात है | सिर्फ
'हमकों देखने में विरोध मालूम होता है, लेकिन आप अध्ययन
करेंगे और समझने की कोशिश करेंगे, तो वात वेंतुकी मालूम नहीं
होगी। आखिर वह इतना ही कहता है कि आप क्या
चाहते हैं ? राज्य न रहे, यह चाहते हैं १ तो राज्य
न रहें, इसकी कोशिश किसको करनी है ) मुझको करनी है न !
'तो उसके पूरे अधिकार मुझे दो, फिर कोशिश करूँगा । अब आप
देखिये-यह तकीदुष्ट बात नहीं है ?
लोगों ने माव लिया यह क्या है ? यह कम्युनिस्ट परस्पर-
विरोधी वाते करता है । मै तो उसको सावित दिमाग का आदमी
मानता हं ।
वेलफेअरिज्म और डिक्टेटरशिप कहना यह चाहता है कि
राज्य अगर नहीं चाहिए आपको, यदि आप उस मुकाम पर
पहँचना चाहते हों, जहाँ व्यवस्था के लिए भी राज्य की जरूरत्
नहीं रहेगी, तो उस मुकाम पर आपको पहुचानें के लिए सारे दृक
मेरे सुपुदें कंर दीजिये । यह प्रॉलेतारियंत डिक्टेटरशिप नहीं है
यहले पार्टी: डिक्टेटरशिपः “होती: है. रिवोल्यूशनरी पार्टी की॑। अब
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