द्वितीय पंचवर्षीय योजना -प्रारम्भिक रूपरेखा | Dwitiy Pachvarsheeye Yojana Prarambhik Ruprekha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
209
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)यदि हमे यथेष्ट तेज़ी से औद्योगीकरण करना है, तो ऐसे उद्योगो का विकास
करना पडेगा जिनमे ऐसी मशीनों का उत्पादन होता है जिनसे उपभोग्य सामग्री
तथा बीच की उपजो के उद्योग चालू रह सके । यह तभो सभव है जबकि लोहा और
इस्पात, लोहेतर घातुएँ, कोयला, स्रीमेण्ट, भारी रासायनिक पदार्थ तथा आधारभूत
महत्व के दूसरे उद्योगो का पर्याप्त मात्रा में विस्तार हो। इसमे साथनो की
कमी और जो साधन है उन पर आवश्यक दावों की अधिकता को कठिनाई अवश्य हे ।
फिर भी हमारे सामने जो आदर्श है,, वह यह नहीं है कि केवल तात्कालिकं
आवश्यकताओ की पूर्ति हो, बल्कि ज्यो-ज्यो विकास कार्य आगे बढता जाए,
त्यो-त्यो हमारी बढती हुई आवश्यकताओ की पूर्ति होती रहे । भारत के ज्ञात प्राकृतिक
साधन अपेक्षतया काफी हे, और इन में से कई क्षेत्रों मे, जैसे इस्पात के क्षेत्र मे सभव
है कि अपेक्षयया यहाँ लागत कम बैठे । यह ज़रूरो है कि भारी तथा पूजीगत माल
उत्पन्न करने वाले उद्योगधन्धो के विकास मे, जहाँ तक कि वे इस आदर्श को प्रा
करते हो, हम अधिक से अधिक आगे बढ जाएँ ।
६ इन दिशाओं मे औद्योगिक विकास की यह माग है पूजी अधिक
हो, पर इसमे बहुत काफी अपेक्षतया कम लोगो को रोज़गार मिलता है।
आधारभूत उद्योगों में पुजी विनियोग से उपभोग्य वस्तुओ की माग पैदा होती है,
पर अल्प काल में इससे उपभोग्य वस्तुओ की पूर्ति का विस्तार नहीं होता । इस-
लिए गौद्योगीकरण के सतुलित ढचे का तकाजा यह् है कि बहुत ज़रूरी उपभोग्य वस्तुओं
की पूति को बढाने के लिए श्रम के सुसगठित प्राप्न का उपयोग किया जाए । यदि हम
तुलनात्मक रूप से उत्पादन के एसे उपायो को काम में लाएं जिनमे श्रम की उत्पादकता
अधिकतम है, तो इसका मतलब यह होगा कि दूसरे तरीके से उपभोग्य वस्तुओ की पूर्ति
मे जितने श्रमिक लग सकते थे उससे कम श्रमिक लगेगे । इससे यह जाहिर हो जाता है
कि उपभोग के मामले में हमे उस काल मे कुछ हद तक त्याग करना जरूरी है, जिस
काल में कि मूल अर्थ-व्यवस्था में मजबूती छाई जा रही है । पर यह त्याग उस समय
धट जायगा जब उपभोग्य वस्तुओ के उद्योगो की उत्पादकता बढाने के लिए अधिक
शक्ति, अधिक परिवहन, पहले से अच्छे औजार, मशीन और उपकरण प्राप्त हो,
ओर दीघेकाल मे समाज को अधिक लाभ होगा । इस बीच मे जो
श्रम शक्ति काम में नहीं आ रही है या कम काममे आ रही है, उसके पूरे
उपयोग पर ज़ोर देने से बेरोजगारी की समस्या का तात्कालिक रूप से कुछ समाधान
होता हैं।
रोच्रगार
७. रोजगार बढाने कौ सुविधाओं के प्रश्न पर योजना के पूजी विनियोग
सम्बन्धी कार्यक्रम से अलग विचार नही किया जा सकता । रोजगार तो
पूजी विनियोग में अन्तनिहित और उसके साथ आता है, और यह बताने की
| =
User Reviews
No Reviews | Add Yours...