तीर्थ यात्रा निरूपण | Tirth Yatra Nirupan

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Tirth Yatra Nirupan  by बलिराम शर्मा - Baliram Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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चीधप्रशंसा | ই यश्चान्य कारयच्छकत्या ताथयात्रा नरख्वर स्वकीयदव्ययानाफ्यां तंस्प पंणयं चंतुगुणं॥६॥ जा काह साप्रथ्यवान परुष अपन द्रन्य अर्‌ यान ( सवारी ) स दूसरे का यात्रा कराता है उसको चोशना फल मिलता है ॥ ९ ॥ मातरं पितर जायां श्रातरं सुददं गुरुम्‌ | यमु दिश्य निमजत अष्टमांश मेत सः ॥७\॥ माता, पिना, भ्राता, स्त्री, गुरु इनमें से जिसका नास लेकर जो पुरुष तीथ्थमें स्नान करता है उसको अछ- मांवा फर मिलता हे ॥ ७॥ तीथोपवासः कतन्यः शिरसो मुण्डनं तथा । यदाह ताथप्राप्रः स्यत्तदह्नः पवेवासर्‌ ॥<-५ उपवासः. प्रकतव्यः पातङह्न श्रद्द भवत्‌\९। जम [दन ताथ वड उससपाद्ल्द्न ताथपवास् आर घुण्डल करना चाहमस भार ताथप्रापष्त डक द्न आर कर ॥ ८॥ ९॥ ह पूत्रमावाहनं तीर्थे मुण्डने तदनन्तरम ।




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