संतों का भक्तियोग | Santon Ka Bhaktiyog

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : संतों का भक्तियोग  - Santon Ka Bhaktiyog

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about राजदेव सिंह - Rajdev Singh

Add Infomation AboutRajdev Singh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( १० ) भक्ति को एकमात्र साघन मानते ह । विद्वानों का मत ३ कि भक्ति मूछतः इन्हीं अवैदिक परम्परावाले शैव एवे वेष्णव मागर्मो की वस्तु है। स्तोके भोतिक- मानसिक परिवेश के अध्ययन-विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि सत आगर्मों की इसी अवेदिक परम्परा ठे सम्बद्ध हैं* अतः आगम उनके परग्पराप्राप्च शाख & ओर भक्ति उनकी अपनी दी परम्पसाप्रा्त वस्तु । रदी वैष्णव भक्ति, तो वह भी संतों की पू्व॑र्ती परम्परा से घनेमाव से सम्मेद्ध है। ईसा की ग्यारहवीं शताब्दी से लेकर पन्द्रहर्वी शताब्दी के बीच उत्तर भारत में प्रवलवेग से प्रसरित होने वाली वैष्णव भक्ति का इतिहास इसका स्पष्ट समर्थन करता है । १४--यह सर्ववादि सम्मत है कि सन्तमत नाथमत का उत्तराधिकारी है। स्वय नाथमत महायान बोद्धघर्म से पर्या्त मात्रा मे प्रभावित ३ यह भी विदित दी है। विद्वानों ने पाया है कि उत्तरकालीन वैष्णव मक्तिवाद भी मदायानिर्यो की भक्ति का ही विकसित रूप है।* इस प्रकार नाथमत, सनन्‍्तमत ओर उत्तर- कालीन वैष्णव घर्ममत महायान बोद्धधर्म से समान रूप से प्रभावित और सम्बद्ध हैं। महायान बौद्धघर्म में पूजित प्रशापारमिता, अवलछोकितेश्वर, मजुश्री भादि देवी देवताओं की मूर्तियाँ एवं वैष्णवों के परमाराष्य बासुदेव मौर लक्ष्मी की मूर्तियों में विलक्षण रूप से मिलने वाडी समानता* उक्त प्रभाव एवं साम्य का अच्छा सवेत देती है। भर्क्तों में परमाद्वित जिस नाम सकीर्तन को ग्रियर्सन ने ईसाई घर्म के प्रभावस्वरूप आगत बताया ই* चीन ओर भारत के सकीतनों के साम्य के आधार पर आचाये श्षितिमोहन सेन ने उसे महायान वोद्धघर्म से स्पष्ट/ सम्बद्ध सिद्ध किया है ।* उन्होंने यह भी सिद्ध किया हे कि आयेतर जातियों में बहुत पहले से ही विद्यमान छुःखबाद, वैराग्य, मूतिपूजा, आदि बातें हिन्दूघर्म में बोद्धधर्म ते ही होकर आई दे ।* १--विस्तृत विवरण के लिए दे० मेरा शोघप्रबध 'सत साहित्य की दाशनिक एव धार्मिक पृष्ठभूमि, प्रथम लंड । :-दे° कर्न, मैनुअल भफ बुद्धिम, प° १२४. ३--दे° दीनेशचन्द्र वेन, वेँगाटी देग्वे्न एण्ड लिटरेचर, पु० ४०१ तथा आगे। ४+दे० হু অনন্ত आफ राय एशियाटिक सोसायटी १९८७ में प्रकाशित लेप ट्विन्दृइज्ञ्म एण्ड नेल्टोरियन्स | ५--दे० यूर साहित्य, डॉ० इजारीप्रसाद द्विवेदी, १९५६, प० ८६ । ६ --दे° बदरी, १० ४६, ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now