धर्मरत्न प्रकरण भाग - 1 | Dharmaratn Prakaran Bhag - 1

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Dharmaratn Prakaran Bhag - 1 by शान्तिसूरि - Shantisuri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पक्रारी श्री हरिभद्रसूरि ने निम्तानुसार कहा हैः-- ^“ पदां जो अर्धौ हेरे, समध होवे, मौप्सूत्र मे वर्थित दोसे रदित दपर वदं (सुनने क) अधिकारो जानो, अरध्र वदकरिलो विनीत होकए सुनने को आतुर दोवे और पूछने छगे । ” ८ जनों को ” इस बहुबचनान्त पद से यह बताया है कि फक्त बड़े मनुष्य ही को उद इय क्के उपदेश देना यह नदीं रखना, कितु साधारणतः सब्रको समानता से उपदेश देना; जिसके लिये सुधंस- स्वामी ने कहा है क्रि-- “जैसे बढ़े को कठना बेसे ही गरीब को कहना, जैसे गरीब को कहना वैसे ही बड़े को कहना ! ^“ उपदेड देता हैँ ” ऐसा कहने का यह आदाय है कि अपनी बुद्धि बताने के रिरे अथवा दूसरे को नीचा गिराने के लिये वा किसी को क्रमाक देने के लिये प्रवर्चित नदीं होता, -किन्तु किस प्रकार ये प्राणी सद्मेमारे पाकर अनन्त मुक्ति सुखरुप महान आनंद के समूह को प्राप्त कर सकते हैं, इस तरह अपने पर तथा दूसरों पर अनुप्रह चुद्धि लाकर (उपदेश देता हूँ) जिसके लिये कद्मा है कि-- ४ जो पुरुष शुद्ध माग का उपदेश करके अन्य प्राणियों पर अप करता है बह अपनी आत्मा पर अतिशय महान्‌ अनुग्रह करता ६ | !! | दितोपदेश सुनने से सत्रे ओताओं को कुछ वान्त से धमै नहीं होती; परन्तु अजुबह चुद्धि से उपदेश करता हुआ उप- दशक की तो एकान्त से अवश्य धर्तरि হীন है। श्स प्रकार मरित प्र ধু २. শিং শাহান দন পন বানা फो सकल अथ कटा। ८ काक अंवतरण दत है अप २सर साया न ১০১ अब दूसरी भाया के लिये दी ^ १८९ दध च्‌ 1 त क्षित পি व पवार अपना प्रतितानुसार कहने के दचध दष ष्ट पाए টা ই हे তি এ পন আল উ |




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