गोलतत्व प्रकाशिका | Golatattva Prakasika

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Golatattva Prakasika by खेमराज श्री कृष्णदास - Khemraj Shri Krishnadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(२) गोलतत्वमकाशिका । जब यहीतरातरे कि सेवा करनेंके लिये समुद्रसी अयाहनुदि होनी बहुत यद्य तव क्या मुझ मंदमातिपर जो वर्णतय सम्रामसेती वननेकी प्राथना करनेके छिये समाजके संमुख उपस्थित होता हूं समाजस्थबुद्धितागर ने টা? অব हेँसेंगे और में सचमुच उनकी य्न षने योव मी एरनु में क्या उस चहुर बनियेके नग्ननेपर अपनी परंपरागत वृत्तिका पाठन न करूँ जो हजारों एसपतियों करोड़पतियोंफी देखकरशी अपनी दसबीस रूपयेकी एँजीके अनुसार ठोनगुड़की दुकान कर सत्यताके साथ व्यापार कता हज अपनी परंपरागतडृत्ति पाठन कतहि । ऐसक- खत मेरे लिये न केब७ अपनी इूर्िका पाठनहींह वसन उन बुद्धिसागरों- के समान बननेफा श्रीगणेशाय नपः भी टै । जव यः पै करि उत्लतिके माका एकमात्र यही साधनहे तौ उकम विव कयो किया ! पमी एकं भारी कारण । नैसा.रना वा राजकुमार दिद्वीहियोंके साम्मे जा- मेरे आण जानेके भयत उनके समझानेफी एफाएक उनके बीच नहीं जाता तारी परी समामे पिह देष मयते छिपा शा । आमक जो पणत्रय सुमाजी हमको देकर अभिवादन দর্থী कतै अमिपद्न कातो दू र वत देते कुत्तकी भांति धुतकारते और মাভিযাজি फब्बारे छोड़ते कयाय आह्षणसे उनका विद्रोह करा नहींएे ॥ इतने दिन पीछे मुझमें जो समाजियोंके बीच जानेका साहस हुआ उसकामी हाठ सुन लीजिये । जबकि में समरानियोके बीच जानेंगे प्राण कनिका भय एषा म जनित वृत्ति छिनमानेकी देखता हुआ कि कर्तव्य ग हकर अपनी दुदशापर घमं घुाधुसा संमू वहारहया कव पकं दिन मैरी सहर्म्मिणी मुझसे सम्बोधनकेर कनेरी द माणनाध ¡ हर कक कायरकी भांति धर्म घुसे रहोंगे। यदि ऐसेददी पढ़ें झोतों निश्य নী কি ঘুজীনা জাযহাহ জী অনি পয আনব परिश्रम কাকি আল বা उसे हय वौ वेगे ओर्‌ রক তী পানি নী, অহ है भूषते मर्जाओगे । सम्मुख जनिमे तो मलेका खब्काही है पर घर सकः शेते अवद्य खय १ । नो कुछ मुझे कहता था सो में




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