कर्मयोग संस्करण | Karmyog Sanskaran-13
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
149
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)फर्म का चरित्र पर प्रभाव ९
के लिए आजन्म काम करते रहते हैं कि मृत्यु के बाद उनकी एक
वड़ी कत्र वने) भँ कुच एसे सम्प्रदायो को जानता हूँ, जिनमें
बच्चे के पैदा होते ही उसके लिए एक कन्र बना दी जाती है,
और यही उत्त लोगों के अनुसार मनृष्य का सब से जरूरी काम
होता है । जिसकी कन्न जितनी बड़ी और सुन्दर होती है, वह
उतना ही अधिक सुखी समझा जाता है । कुछ लोग प्रायश्चित्त
के रूप में कर्म किया करते है, अर्थात् अपने जीवन भर अनेक
प्रकार के दुष्ट कर्म कर चुकने के बाद एक मन्दिर बनवा देते हैं
अथवा पुरोहितों को कुछ धन दे देते हैं, जिससे कि वे उनके लिए
मानो स्वर्ग का टिकट खरीद देंगे ! वे सोचते हैं कि वस इससे
रास्ता साफ हो गया, अब हम निर्विध्न चले जायेंगे । इस प्रकार,
मनुष्य को कार्य में लगानेवाले बहुत से उद्देश्य रहते हैं, ये उनमें
से कुछ हुए ।.
अब कार्य के लिए ही कार्य--इस सम्बन्ध में हम कुछ
आलोचना करें | प्रत्येक देश में कुछ ऐसे नर-रत्न होते हैं, जो
केवल कर्म के लिए ही कर्म करते है । वे नाम-यश अथवा स्वगे
की भी परवाह नहीं करते । वे केवल इसलिए कर्म करते है कि
उससे दूसरों की भलाई होती है । कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो
और भी उच्चतर उद्देश्य लेकर गरीबों के प्रति भराई तथा
मन्ृष्य-जाति की सहायता करने के लिए अग्रसर होते हैं, क्योंकि
भलाई में उतका विश्वास है और उसके प्रति प्रेम है । देखा जाता
है कि नाम तथा यश के लिए किया गया कार्य बहुधा शीघ्र
फलित नहीं होता | ये चीजें तो हमें उस समय प्राप्त होती हैं,
जब हम वद्ध हो जाते हैं और जिन्दगी की आखिरी घड़ियाँ गिनते
रहते है । यदि कोई मनुष्य निःस्वार्थता से कार्य करे, तो क्या उसे
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