महाकवि कल्हण | Mahakavi Kalhan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
158
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० । महाऊवि कल्टण
की (श्यी ती) । किसी अन्नातनामा वौद्ध विद्वान! ने 'महावश' की टीका
(१२-ी शली) में जिसी ये सब महाकवि कल्दण के समकालीन विद्वान् थे ।
पालियाव्य में वर्णनात्मक श्रेणी के काव्य-ग्रन्यो में बुद्ध-रश्ितक्ृत ? 'जिनाव-
कार' (११वीं शती) उत्तेखतीय है । सिह तीमिशु सारिपुत के शिष्य छपद 3 ने न्यास!
ही टीका “यासप्रटीप' (१२वीं श्री) में दिखी । इसी 'न्यासप्रदीप” पर “सुत-निद्वेश! *
मामक व्याकरण ग्रन्थ की रचना सन् ११८१ ई० में की गईं। सिंहतीभिक्ष् सारिपृत्र
के शिष्य स्यविर सघरक्षिनञ (र्वी शरी) ने क्च्वायन व्याकरण पर एक प्रणय
'सम्बन्धचिस्ता” सिखा | इन्होने ही भिक्षु धर्म श्री के 'खुदक सिक्खा! पर एक
टीका हुक धिवमा टीका सिखौ । कच्चायत व्याकरण प्र वे गये ग्रन्थोमे
स्थविर धर्मी (१रवीं शनी) कौ “सदत्थ भेदचिन्ता' (शब्दाथंभेदजिन्ता) उल्लेख-
यीय है। इसी कच्चायत व्याकरण पर आधारित 'सहनीति!/ नामक-व्याकरण
(११५४ ई०) के रचनाकार वर्मी भिक्षु अग्गवश ? भी कल्हण के सम-सामयिक थे ।
यमरतौश् परर आधारित “अभिधावप्पदीपिका' नामक पराविकोशग्रन्य के
रचनाकार महायेरमोग्गतवायन* (११५३-८६ ई० के आसपास) भी कल्हण के
समवर्वी थे। सिंहली मिश्षु सारिपुत्र के शिष्य स्थविर सघरक्षित? (११वीं शती)
मे 'वृत्तोदय” पालि के एकमात्र दादश्झास्त्रविषयक ग्रन्थ की रचना की। इन्ही
स्थविर सघरक्षित ने पालि के एकमात्र काव्यशास्त्रग्रन्य 'सुव्रोधालकार' की
रचना वी ।
अष्टाव्यायी पर वृत्ति लिखने वाले केशव ° इन्दुभनी-वृत्ति' के रचयिना
इन्दुमित्र । । दुर्घटवृत्ति के रचयिता मैत्रेयरक्षित सभी 1: श्वी शती मे कल्टणं
१-गैरोवा, सम्हत साहित्य का इतिहास पृष्ठ ४१८,
२- राजा, वही, पृष्ठ ४९३ (सम्पादित-गैले द्वारा सिह॒दी सस्करण, १९००)
३-गै रोला, वही, पृष्ठ ४२५
४-गैरोला, वही, पृष्ठ ४२६, मेविल थोड, ददि परालि लिद्रेचर आफ बरमा, पृष्ठ
१७, सुभूति-नाममाला, पृष्ठ १५ (भूमिका) हु
५-येरोला, 'सस्कत साहित्य का इविहास', पृष्ठ ४२६
६-गै रोगा, वही, पृष्ठ ४२३
७-कीथ, 'ए हिस्ट्री आफ सस्ट्टत लिट्रेचर' पृष्ठ |२६
प>क्रीथ, वही, पृष्ठ ४३२ मृनिजिनविजय, 'बभिधानप्पदीषिका', पृष्ठ १५६ (प्रका०
१९८० विक्मी, जहमदावाद) ९-गैरोवा, वही, पृष्ठ ४३०
१०-रोला, वही, पृष्ठ ६४४, पुर्पोत्तमदेव ही “भाषावृत्ति' ५/२(११२
११-गैरोता, वही, पृष्ठ ६४६, विट्ठव की 'प्रक्रियाकौमृदी” भाग १, पृष्ठ ६१०,
६८६, भाग २, पृष्ठ १४५
१२-गैरोला, बही, पृष्ठ ६४१, उपादिंवृत्ति, पृष्ठ ८०, १४२ गैरोला, वही,
पृष्ठ ६८७
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