सुबोध भारतीय अर्थशास्त्र | Subodh Bhartiya Arthshastra

Subodh Bhartiya Arthsastra by केवल कृष्ण ड्युवेत - Keval Krishna Dyuvetजे० डी० वर्मा - J. D. Varma

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

केवल कृष्ण ड्युवेत - Keval Krishna Dyuvet

No Information available about केवल कृष्ण ड्युवेत - Keval Krishna Dyuvet

Add Infomation AboutKeval Krishna Dyuvet

जे० डी० वर्मा - J. D. Varma

No Information available about जे० डी० वर्मा - J. D. Varma

Add Infomation AboutJ. D. Varma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्राकृतिक साधन ६ परिवहन शरोर संचार के साधनों का विकास करने के लिए भी जब-विद्युत के জামী का कम महत्त्व नही है । जल-वियुत्‌ प्ाम्रात्य जतता की सुख-सुविधा तथा मनोरजन के स्तर को उन्नत करने मे जो अशदान कर सकती है, उसका भी बड्य भारी प्राथिक मदृत्त्व है । इससे जनता की कार्यक्षमता म॑ बडी वृद्धि होगी । भारत में जल-विद्युत्‌ शा विकास [प्जव1०-७००७७० 0०0७०थ# पा पतका8) -- भाग्यवश, भारत में जल-शवित के साधन महान हैँ (चार करोड किलोवाट ) * झोर, सुखद घटनावश, वह देश के उन भागो में है, जहाँ कोयले की कमी है । हमें विद्यमान जल-विद्युतु कारखानों पर दृष्टिपात कर लेना चाहिए। बस्बई मे राटा जल-विधृत्‌ व्यवस्था (6 79 1350হ0-13190670 899060 ग एग) --टाटा जल-वियुत्‌ के कारखाने देश मेँ विद्यमान जल- विद्युत्‌ कारखातो में सबसे बडें हें । य पश्चिमी समुद्र-तट पर हैं गौर इनके नाम लोगा- बाला ([,॥७७७४७), प्रान्ध्र घादी (तह ए४1०9) तथा नीलामुला (18 21018) परियोजनाएं हैँ । मुख्य परियोजना लोतावाला म है श्ौर प्रन्य परियोगनाएँ उसके साथ जोडी गई हैं। उनकी सम्मिलित क्षमता लगभग भरढाई लाख किलोवाट दै । उनसे मिलो, चच्तो, रेलो तथा बम्बई तगर के प्रधिव[सियों को बिजली मिलती है। वर्तमान जल-विद्युत्‌ के विवास के क्रम में दूसरा स्थान मद्राप्त का है। पाइ- कारा जल-विद्युत्‌ परियोजना ने १६३२ में विजली देना शुरू किया था। यहाँ पाइकारा नदी पर रोक लगाकर नीलगिरि पव॑तों मे उसके ३०० फूट के जल-प्रषात का उपयोग किया गया है। मेत्तूर जल-विद्युत्‌ परियोजना, यद्यपि मुख्यत सिंचाई के लिए जल सचय बरने के उद्देश्य से बनाग्री गयी पी, पर्याप्त विद्युत्‌ शक्ति भी उत्पत्त करती है । पापनासम में पापनासम परियोजना १६४४ मे कार्य करने लगी थी। पाइकारा भौर पापनासम नदियों पर प्रतिरिबत विद्युत्‌ शवित भो तैयार की जा रही है। मरढी जस्-विख् त्‌ परियोना, जो {६३३ म कां कटने सी धी पमाब (भा०) को बिजलो देती है। यहाँ व्यास की सहायक नदी उहल के पानी का उपयोग किया गया है। इस नदी के पानी को तीन मील सम्दी सुरण के द्वारा मोडा गया है । प्रौर उपरात जोगेनद्र नगर (हिमाचल प्रदेश) में इस्पाती नलो द्वारा १,६०० फुट को ऊँचाई से गिराया गया है। इससे लगभग ५० हज़ार किलोवाट बिजली मिलती है। उत्तर प्रदेश में गंगा नहर की बिजली परियोजना से राज्य के पश्चिमी भाग के मुख्य नगरो फो बिजली दो जाती है । शवसमुद्रम्‌ मे कावेरी पर मंसर जल विद्युत के कारखाने न केवल भारत में ही प्रत्युत एशिया भर मे ख्॒वप्रधम स्थापित हुए थे। इन कारखानो से कोलार की सुवर्ण सानो भौर बहुत से बगरो तथा देहातो फो बिजलो मिलती है। ये लगभग ४० हजार किलोवाट बिजली उत्पन्न करते हैं । मैसूर में महात्मा गाधी जल-विद्युत्‌ परियोजना, जो पहले जोग विजली योजना (गण एक्ट 80९४०) बहलाती थी, १६५२ में ही झारम्भ हुई थी। शेरावती नदी के जल को रोककर जोग जल-प्रपातों से समभग सवा लास किल्लोवाट बिजली




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now