ढूंढक हृदय नेत्रांजन | Dhundhak Hriday Netranjan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
448
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about आत्माराम जी महाराज - Aatmaram Ji Maharaj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)टंढनीनीके-कितनेक, अपूर्ववाक्य, (१३)
~~ ---------------- ~~ --~--~ ~ -----------=-----~-------~
तो पिछे पीताबरीयोंने, मूत्तिमं परमेश्वरकी कल्पना किई हैं,
यह केसे सिद्ध करके दिखलाती हे । क्यौ मंदिर, मूतत्तियोंतो,
जारो वर्ैके बने हुये हे । ओर चारोबणं ( जाति , के रोक, अ-
पना अपना उपादेयकी-मूर्तयोौको, मन दे रहः तो काद
नीजीको, एक पीतवच्र वादी दिखाई दिये ?
( १७ ) एष्ट, १३९ मे-सूत्रका-अथे है, सोभी दूढनी ।
और--नियुक्तियां है, सोभी दृढनीही है । ओर सूत्रोकी-भाष्य, है
सोभी दंढनीजी । अपने आप बनी जाती हुई, कहती है कि-तु-
म्हारे मदोन्पत्तौकी तरह, पिथ्पाडिभके, सिद्ध करनेके छिपे, उषे
कल्पित अर्थ रूप, गाल गरड निकरे छिय, नियुक्ति नामे, बडव्रद
पोथे, बनारस्वे है, क्या उन्हें धरके हम बांचे ? | इत्यादि || १३॥
पाठकाण ! चतुर्देश पूर्व धर, किजो श्रुत केवली भद्र वाहु
¢ _@ न्रे (^) ¢^ ® 9 0 ® € ४ ২
स्व्राभीजी है उनकी रची हुई, नियंत्रित अथ वारी, नियुक्तियां, सो
तो कल्पित अथके गोले, ॥ ओर अगदं নাহ ভিন, মীর पंडि-
तानी बनने वारी, आजकलकी जन्भी हुई, जो दूंढनीजी है, उनके
वचन, साता यथाथ-नियुक्तियां आर यथाथ-भाष्य अह क्या
अपुत्र चातुरी, मूढोफे आगे प्रगट करक दिखती है ! ॥
(१८) ९8. १४४ में--लिखती है कि--मूरस्तिपूनाके, उपदेश-
कौ, कुमार्भे गेरनेवारे हे ॥ १८॥
न 9 ०७ 0 ৬ ৬ | ৬২ পি কটি ৯৮৬
सूत्राथेके अंतप, यह अर्थ, जो दूंढनाजीने लिखा है सो, केवल
मनः कलित, जूढ पणे ङिखा दै ॥
( १८) ष्ट. ११९ में--लिखती है ।कि-मृत्ति-पृजा, मिथ्या-
त्व, ओर, अनत संसारका हेतु ॥ १९ ॥
User Reviews
No Reviews | Add Yours...