सुवेला | Suvela
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
246 MB
कुल पष्ठ :
68
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तभी खुलेंगे द्वार /
अभी रुद्ध हैं द्वार !
अभी नहीं वह ज्योति नयन में
जो पहचाने रूप,
हृदय-भूमि को अभी चाहिए
नव जागृति की धूप /
जिसके स्पर्शमात्र से सरसं
मानवता के प्राण,
जिनका सरत-यरत कर प्रतिमा
वने, मूके पाषाण !
स्वप्न का हो श्व॑गार !
किन्तु अभी तमसाइत है नम
अभी रुद्ध हैं द्वीर !
अभी रुद्ध हें द्वार !
अभी नयन में केलि कर रहे
योवन मद के सपने !
मन की दुर्बलता, आशंका
आतुर भय से अपने,
अविश्वास की कंथा ओढ़े
मानव अब तक सोता
वह क्या जाने खर-उपा का
दर्शन कैसा होता !
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