कला की कलम | Kala Ki Kalam

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Kala Ki Kalam by रघुवीर शरण - Raghuveer Sharan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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, , कला की कलम नारी एक रहस्य है जो हर स्पन्दन मे प्रतिबिम्बित है, पर पक्ट में नहीं श्राती । 'तुलसी' के शब्दों सें--- ! “विधिहु न नारि हृदय गति जानी! नारी में आकर्षण है, आक्रपण में संसति बेंधी हुई द । संख्ति में दु स्व और सुख है । दु,ख शौर सुख की श्रभिव्यक्ति ही कला हैं। नारी के नेत्रों में अमृत, हलाहल और मद है । नारी के श्रधरा पर गीत हैं। नारी के कपोलों पर भावना की क्रीडा 81 नारी के भाल पर भावुकता का चन्द्र-चापल्य है ! नारी कौ श्यलक मेँ रादि श्रीर्‌ श्रन्त की चिन्दी हे । नारी की जवानी वृषे को जवान श्रौर जवान को बूढा बना सकती है । नारी के दंगित मेँ खृजन श्रौर प्रलय है । नारी का लोहा सब मानते हैं। कोन ऐसा अदभुत है जिसे नारी ने परास्त नहीं किया ? कौन ऐसा हे जिसे नारी ने जिन्दगी नही दी ? नारी की कल्पना श्रधाह दै । नारी का सौन्दयं श्रथाह है । नारी का हृदय श्रथाह ই। হজ रहस्यमयी की कहानी श्रुत रै । इसी षि से कला की कलम का जन्म होता है। स्त्री और पुरूष की प्रणय भावना ही साहिव्य की ध्वनि हैं । इसी रोमांस की रमणी सेवेदना का श्रतल उद्रेक होता है। यही दिव्या सम्बेदुना की मीमांसा है । यदी स्नेह सै प्रज्वलित दीपशिखा द मरौर यही सक्ति \ यही सुख दै श्रौर यही श्रौसु । संयोग का सुख, समाज का संघर्ष, संसार की सिद्धि श्रीर विरह के आंसू चुगन चाली कलम नारी ही के इश्क की दीवानी होती है । नारी ही कवि की तटप है। नारी ही जीवन का तूफान है। नारी ही मेंकघार और मेझधार की पतवार है। नारी ही नर्क और नारी ही स्वर्ग है। नारी ही संख्ति की सुदाग बिन्दी ओर नारी ही नाव और गति है| नारी सें खो कर नर सोता नहीं, पाकर निकलता है। इस उलकन में कलाफार जितना उलमम्ता है उतनी ही उसकी कला सुलमती है। प्रणय से प्यास और प्यास से प्रेम प्रकट होता है श्रोर यही साहित्य की गति है। नारी साहित्य ही नहीं संसार की चेतना है। यही माया है, यही 'ममता है, यही मोह है और यही ऊक्ति | हर कला इसी के ছুরির অব লীন १५




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