नैन बहे दिन - रैन | Nain Bahe Din - Rain
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
267
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ नैन बढ़े दिन-रैन
हमारी कल्वताधों की कालीन पर वे कहानियाँ एवं उसके थात्र ही
छाये रहते थे ।
माँ तो माँ ही थी ! तब क्या, भआाज भी मैने कभी मेरी मां को मेरे
पिताजी के सामने बोलते या उनका प्रपमान करते हुए नहीं देखा, न ही
सुना ! भौर फिर पिताजी भी तो कितने विजेकी थे ! मेरे देखते हुए
उन्होंने कभी भी माँ के साथ ऐसा कोई बर्ताव नहीं किया कि जिससे
मेरे दिमाग में कुछ प्रजीर सा लगे |
येसारी बातें मैं यूं ही नहीं करता, बहुत प्र॒थ॑ रखती हैं ये
बते, मेरे समग्र जीवन पर इन बातों का गहरा भ्रसर अंकित है ।
मेरे व्यक्तित्व के निर्माण में इन बातों वे काफी स्थान रखा है। मेरी
जिन्दगी की राह पर श्ायी धूप-छांव में हन बातों ने मेरा पुरी ईमान-
दारी के साय साथ निभाया प्रौर जव मैः तुम्हारे सामने मेरी जिन्दगी
की किताब को खोल ही बैठा हें तो फिर मुझे कह लेने दो सारी बातें !
पिताजी की तरफ मैं ज्यादा मर्यादा रखता रहा । हाँ, मुझे उतका
कोई हर नहीं लगता था, पर न जाने क्यों उनसे खुलकर बातें करने में
मुझे हिचकिचाहट होती थी | उनसे सवाल-जवाब करने में में झ्िझ्कता
था, झाज भी नहीं कर पाता । उनके अरति मेरे दिल में स्नेह एवं भादर
इमिेशा ज्यों का त्यों बता रहता था, पर एक ऐसी घटना बत गयी मेरी
জিলমী में ...मेरें दिल में पिताजी के लिये स्नेह में कमी भा गई....।
भेरा मने उनसे सख्त नाराज हो गया। भाज भी नहीं भूल पांता उस
दर्देभरी घटना को। रह रह कर कसक सी उठती है बिल में ? दिल
करता है ...वगावत कर दूं! मेरे सपनों की दुनियाँ की भाग लगाते
জালা ফা पर्दाफाश कर दूं। पर एक मर्यादा की रेखा उतत क्री
हिष्मत नहीं होती ।
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