मानव - सन्ततिशास्त्र | Manav - Sant Tishastra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
276
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मुंशी हीरालाल (जालोरी )- Munshi Heeralal (Jalori)
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रकरण पिला
प्रस्तुत विषय के जानने की आवश्यकता ओर महस्व ।
लिधर को आंख उठाकर देखते हैं उधर हो ईशरोय लीला, को
विचित्रता नकर श्रातो है। ष्टिको मनोता अपूव शै) छश रमे
টিন २ अपूव ओर चमत्कारिक दृश्य देखने में आते है, कि जिम का बयान
करना बहुत हो कठिन है। प्रत्येक बात में कोई न कोई रहस्य अवश्य
बहता हो है। प्रत्थक बात मनुष्य के लिये बोधदायक है--प्रत्येक बात समुच्य
के लिये आनन्ददायक है--प्रत्येक बात से सशुष्य ज्ञान प्राप्त कर सकता है--
प्रत्येक बात बुद्दि को विकसित करने में चमत्कारिक असर रखतो है। जिस
बात को मनुष्य सामान्य समभ कर टाल देता है, थोड़ा विचारने से, उस
में भो कुछ न कुछ अपूर्वता अवश्य मालुम पड़तो है। इन सबों को देखते
चुए यहो कइना पड़ता है कि “ ईश्वरोय लोला बको विविच”) य
विचित्रता भी अपार है। परमात्मा ने इसो लोला वेखशचित्रय में अर्थात् इसो
लोला वेचित्रय का विस्तार कर के, इसो को परिसोमा में रूृष्टि क्रो छत्पत्ति
को, इसो लिये संसार स्रथम् विचित्र है श्लोर उस को एक वात भो विचित्रता
से सालो नहीं है।
षसो संसार वेचिश्रय मे - इसो विचित्रता के समाग रूपो अपार सभुदरमें
अगशित गुप्त शक्तियां चोर गुप रहस्य मौजूद हैं: अर्थात् संसार ईशरोयथ
मेदों, अमोध शक्षियों, गुप रहस्यों और अगशणित विद्यात्ं का खज़ाना है।
मनुष्य को बुद्धि का पता लगाया जा सकता हे, किन्तु इन को याद नो
मालुस को जा सकतो। उ्यों २ मनुष्य को दुहि विकत्तित होतो भौर
User Reviews
No Reviews | Add Yours...