सवय धम्मदोहा | Savya Dhammdoha

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Savya Dhammdoha by डॉ हीरालाल जैन - Dr. Hiralal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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‰॥ सात्रयषम्मदोहा तीन नामों का सम्बन्ध बतझाया गया हे-मूलग्रन्थकार योगीन्द्रदेव, पैजिका- कार रूपमीचन्द्र और एृतिश्ठर प्रभाचन्द्र सुनि । इसी कथन के घ साथप, प्रति के अन्तिम वाक्य पर विचार कीजिये उव बक्य म कहागया दै कि संबत्‌ १५०५, कार्तिक सुदि १५, सोमवार को विद्यान।नदि के पट पर अधि- हित मह्ठिभूषण के शिष्य प॑ लक्ष्मण के पठनार्थ दोहकश्रावकाचार लिखा गया । इमारा अनुमान है कि लक्ष्मण लक्ष्मीयन्द्र का दीक्षित होने से पूवे का नाम है और उन्ही की शिष्यावस्था में उनके पठनाथ बह प्रति तैयार हुई थी | इतसे निश्चय द्वेगया कि लक्ष्मीचन्द्रजी इन दोहं के मूलकर्ता नहीं हैं। उन बनाई हुई ' पंजिका ” कोनसी है इसपर आगे चलकर विचार किया जयगा । प. प्रति में जो. ‹ रक््मीचन््ेविराचिते ` वाक्य आगया उसी से पछे के लिपिकारों ने तथा भ्रुतसागरजी ने घोखा खाया। यथार्थ में वहां / श्री ल्क्ष्मीचन्द्रडिखित ' या श्रीलक्ष्मीचन्द्राथलिखिते ” पाठ द्वोना चाहिये था | लक्ष्मीचन्द्रकृत भन्‍्य कई सत्कृत, प्राकृत व अपग्रंश अन्थ हमारे देखने सुनने में नही कराया । प्रन्यकतो की खोज में अब हमारी दृष्टे येगीन्द्रदेव पर जाती है जे। अ. और भ. प्रति में इस प्रन्थ के कती कहे ग्येद। योगन्दरदेव ॐ अबतक यार प्रन्य अकाशेत हो चुके ई-परमात्मप्रकाश, योगसार » अमताशीति कोर निजात्माश्कम्‌। इनमे से प्रथम दो प्रस्तुत ग्रम्थ के समान ही अप- प्रेश दोहे में रच गये है। तीसरा ग्रन्ध संस्कृत व चोथा प्राकृत में है। श्रीयुक्त उपाध्य ने एक अंग्रेज़ी लेख में अस्तुत ग्रन्थ व परमात्मप्रकाश का मिलन कर यह मत प्रकट किया है कि इन दोनों को रचना में एक दो जगह साधारण सम्म छोड को स्मरणीय घ्य नही है। इसने प्रन्थकार ॐ सभी प्रन्षों को इसी द्वेतु से देखा । तीन ग्रन्थों में मे तो ভাই साहरय नहीं मिला ढिन्तु परमात्मप्रकाश में निश्न लिखित उक्तियों पर दृष्टि अटकी | मिलान की सुविधा के छिये हम प्रस्तुत प्रन्थ के अवतरणों के साथ प्राथ इन्दे यहां বিঝন ₹




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