इतिहास एक अध्ययन भाग - 2 | Itihas Ek Adhyayan Bhag - 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२३ साध्य या साधन ? इस किताब का आरम्भ ऐतिहासिक अध्ययन के ऐसे क्षेत्रों की खोज से हुआ था जो काल एवं अवकाश की अपनी सीमाओ के अन्दर ही समभ में आने योग्य हो और जिनको समभने के लिए बाह्य ऐतिहासिक घटनाओ के साक्ष्य की आवश्यकता न पड़े । जब हम इन स्वयपूर्ण इकाइयो की खोज करने लगे, तो वे हमें जातियों (स्पेसीज) के ऐसे समाजो मे प्राप्त हुईं जिन्हें हम सम्यताओ के नाम से पुकारते हैं। तब से हम यह मानकर अपना काम करते रहे हैं कि अभी तक हमने इक्‍्कीस सम्यताओ की उत्पत्ति, विकास, ह्वास एवं विच्छेद का जो तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है, उसमे वे सब महत्त्वपूर्णं बाते आ जाती है जो प्राथमिक मानव-समाजों से निर्मित प्रारम्भिक सम्यताओं के बाद से मानव जाति के इतिहास में घटित हुई है । इतना सब होते हुए भी बीच- बीच में ऐसे सकेत पाकर हम लडखडा गये है कि अपनी मानस-यात्रा की मजिल में हमे जिन बद दरवाजों को खोलते हुए गुजरना है उन सबको खोल सकने मे शायद हमारी यह सामान्य कूजी समथं न होगी । जिन सभ्यताओ के होने का हमे पता है उनमे से अधिकाधिक से जब हम परिचित हो रहे थे तभी, उस कार्य के प्राय प्रारम्भ मे ही, हमे पता लग गया कि उनमे से कुछ एक-दूसरे से सम्बन्धित है। जिस ढग पर वे परस्पर-सम्बन्धित थी उसे हमने 'उत्तराधिकार और सबद्धता' (4ए9छब्वाट्याक्षाणा 200१0 &ग्रीक्रधंगा) के नाम से पुकारा । फिर हमने यह भी देखा कि उनमे इस सम्बन्ध के प्रमाणस्वरूप, एक प्रभावशाली अल्पमत, एक आन्तरिक श्रमजीवी वर्ग (1१६८४४०) 0১:0151800 জীহ एक बाह्य श्रमजीवी वर्ग (डाटा) ?:016/&7141) के स्वभाव को प्रकाशित करने वाले कुछ ऐसे सामाजिक तत्त्व भी मिलते है जिनमे यह आभासिक समाज, अपने विघटन की क्रिया मे, विभाजित होता गया। फिर यह मालूम हुआ कि इन प्रभावद्ञाली अल्पमतो ने एसे तत्त्वज्ञान का भी सृजन किया दै जिमसे कमी-कमी सावभौम राज्यो को प्रोत्साहन प्राप्त हुआ है। अत. श्रमिकों ने ऐसे उच्च धर्मों को जन्म दिया जिन्होंने सा्वभोम धर्म-सघटनों के रूप मे अपने को गठित करने की चेष्टा की। इसी प्रकार बाह्य श्रमिकों ने ऐसे वीरतापूर्ण युगों का निर्माण किया जिनसे बर्बर युद्धपिपासु दलो की स्थिति दु.खद हो गयी । सब मिलाकर ये अनुभव एव सस्थाए स्पष्टतः आभासिक एवं सबद्ध सम्यताओं के बीच एक श्रृंखला उपस्थित करती हैं ।




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