श्री महावीर चरित्र | Shri Mahavir Charitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री महावीर चरित्र. ११ केवलज्ञानकी प्राप्ति । भगवानने उस शिलापर ध्यानके प्रमावसे चार प्रकारक घातियाकर्मोंकी ६३ प्रकृतियोंकी नाश करके বহার পাতি বসু তবযা জীহ हस्त नश्षत्रके योगमें केवलज्ञान [सवैज्ञत्व | प्राप्त किया । उस समय नवलब्धिकी प्राप्ति हुईं। अनंत चतुष्टय अथोत्‌ अनंतदशेन, अनंतज्ञान, अनंतवीय. अनंतसुख उत्पन्न हुये । स्वगम इंद्रने अपने अवधिज्ञानस जानकर कि भगवानको केवलज्ञान प्राप्त हुआ है. आसनसे उठकर सात पेंड चलकर परोक्ष नमस्कार किया और कुबेरकों भगवानके धर्मोपदेश श्रव- णाथ समवसरण नामका सभामंडप रचनेका हुकुम दिया । तथा समम्त देवों सहित भगवानके समवसरणमें जाकर भगवानके तीन प्रदक्षणापूवक दर्शन करके नमम्कार किया तथा णक हजार आढ नामका स्तोल रचकर स्तुति की। तत्पश्वात्‌ भगवानकी दिव्य ध्वनिर्मे धर्मोपदेश पदार्थोका स्वरूप वणन होने लगा, परंतु विना गणधरके उस बाणीको धारणपू्वैक कौन विस्तारसे वणन कर सके ? तब इंद्रने अवधिज्ञानसे जाना कि इन लछोगोंम तो कोई गणधर होनेलायक है नहीं, किंतु इंद्रभूति नामका एक ब्राह्मण पंडित जो कि गौतम नामसे प्रसिद्ध है वह. जिनधमंसे विरुद्ध चार वेद, अठारह पुराणादिक समस्त शाञ्त्रोका ज्ञाता है । उसको किसी प्रकारसे बहकाकर यहां लाऊं, तो भगवानका दुशेन करते ही वह जैनधमे धारण करके भगवानका गणधर




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