गाँधी साहित्य प्रार्थना प्रवचन [भाग १] | Gandhi Sahitya Prarthna Pravachan [Bhag १]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रार्थना-पवचन ११ जो उनके मेम्बर हे वे तो मुझसे मुहब्बत रखते है । भ्रगर वे सब मुझे यहां रहने देना नही चाहते तो मेरा यहा रहना फिजूल हो जाता है। मुझे यहा रहना ही नही चाहिए, लेकिन उनके नेतासे मेरी वात हुई । उन्होने कहा कि हम किसीका कुछ विगाडना नही चाहते। हमने किसीसे दुश्मनी करलेके लिए सध नही बनाया हँ । यह्‌ सही हं किं हम लोगोने आपकी अ्रहिसाको स्वीकार नही किया है, फिर भी हम सब काग्रेसकी कैदमें रहने- वाले है। काग्रेस जवतक अहिसाका हुक्म करेगी हम शातिसे रहेंगे। इस तरह उन्होने बडी मुहब्बतसे मीठी वाते की । इतनेपर भी अगर आप मुझे रोक देते है तो फिर कलसे झाप यहा भ आए। मे इस तरहकी प्रार्थना करना नही चाहता। में भौर ही किस्मका वना हा हू। में हिंदु हु तो मूसलमान भी हु और सिक्‍ख तो करीब- करीव हिंदू ही हे। मेने ग्रथ साहबको देखा है। उसमे काफी हिस्से ज्यो-के-त्यो हिंदू धर्मके है--उसी धर्मके, जिस धर्मका में पालन करने- वाला हू । इसलिए झापसे अदवके साथ मेरी विनती है कि एक बच्चेके कहनेपर भी अगर मे प्रार्थथा रोक देता हु तो आप ज्ञात रहिए । यदि भ्रापको सगड़ा करके ईर्वरका नाम लेना है तो वह नामतो ईश्वरका होगा, पर काम शैतानका होगा। और में कभी दौतानका काम नहीं कर सकता। में ईव्वरका ही भक्त हू । आप इसे बृुजदिली व समझें। जब জাদ बड़ी तादादमे होते और सवे कहते किं प्रार्थना मत करो तो मे जरूर करता । तव मै कहता कि आप मेरा गला काटिए, मे प्रार्थना करत्रा ह, पर यहा श्राप सवके वीचमे दो-पाच भ्रादमी मूके रोकना चाहते है । श्राप उन्हे दवा ले और मुझसे कहें कि प्रार्थना करो तो वह्‌ बतानी होगी । भौर श्ैतानके साथ मेरी निभती नही । जो खुदाका यानी ईक्वरका दुश्मन है वह राक्षस है। उस राक्षसके साथ भेरी वन नही सकती । मेरा लडनेका तरीका तो राम-जैसा है। राम-रावण-युद्ध जब चल रहा था तव विभीषणने रामसे पूछा कि भाप बिना रथके हे, भ्राप कैसे लडेगे ? तव रामने सच्चाई, বাধ भादि गुणोके आधारपर कैसे लडाई लडी जाती है यह बताया । राम ईश्वरका भक्त था, इसलिए वात भी वैसी ही करता था। उसको




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