व्यवहार भानु | Vyavhar Bhanu
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
326
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about दयानंद सरस्वती - Dayanand Saraswati
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)व्यचहारभाजु: ११
मैं. -फुलवारी निकालेंगे इत्यादिं कुशिक्षा फरते हैं, उनको माता
पितो शौर आचाये न समंकना चाहिये, किन्तु सन््तान और
शिष्यों के पक्के शत्रु और. ढुःखदायक ई, क्योकि जो बुरी ভা
, देखकर लड़कों को न घुड़कते और च दंड देते हैं, वे
क्यो कर माता, पिता ओर आचाय हो सकते ई १
क्योकि जो श्रपने सामने यथातथा वकने, निर्लज्ा होने.
व्यर्थ चेश करने आदि बुरे कर्मो से हटाकर विद्या रादि शुभ-
गुणों के लिये उपदेश नहों करते, न तन, मन, धन लगा के
उन्तम विया व्यवहार का सेवनं कराकर अपने सन्तानो को
सदा श्रेष्ठ करते जाते हैं. वे माता, पिता और आचाये कद्ाकर
अन्यवाद् के पाच कभी नहं हो सकते । श्रौर जो अपने २
संतान और शिष्यो को ईश्वर को उपासना, धमै, अधर्म, प्रमाण,
श्रमेय, सत्य, मिथ्या, - पाखरड, वेद, . शाल आदि-के लक्तण
और .डनके स्वरूपः. का यथावत् बोध करा और साम्रथ्ये के
-अचुङ्ल उनको वेद शास्रं के वचन भी कराटस्थ कराकर
विद्या पढ़ने, आचाये के अश्ुकूल रहने की रीति जबा देवें,
जिससे विद्याप्राप्ति आदि प्रयोजन निविश्न सिद्ध:हों, वे-ही माता
पिता शरोर आ्वभः-क्ाते हैः} -
( प्र० )/विध्वा किस २ प्रकार और किन फर्मों से होती.है !
(उ० মিনি भवति । आंगमकालेन
स्वाध्यायक्रालेन प्रघचनकालेन व्यवहारकालैनेति ॥
লা আত ৭11 1 आ० १ ॥
विद्या चार प्रक्रार से आती है-+आगम; खाध्याय, प्रवलषद ,.
शमर ` व्यवहार काल । 'आगमकाल' डसको कहते हैं कि जिससे
User Reviews
No Reviews | Add Yours...