आत्म-चिन्तन 1500 | Aatam Chintam 1500
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.86 MB
कुल पष्ठ :
108
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नं
हचे है कि श्राज बीसवीं शताब्दी में भी भारत, छापने
जरढातिजरठ आध्यात्मिक आह को नहीं छोड़ रहा है। जहां
श्राज अखिल विश्व भोतिकता के मद्यपान से उन्मत्त हो रहा
है, सभ्पता के नाम पर गगनाजुण से वायुयानों द्वारा सर्वथा
अरक्तित खुले नगरों पर ख़त्यु की वर्षा कर रहा है, निरीह
खियों, पुरुओं तथा को मल-कान्त-कलेवर बालकों को हजारों
को संख्या में एक साथ निदयता पूर्वक भ्रून रहा हे, वहां
भारत में श्रब भी आध्यात्मिकता का शान्ति-निकर
मर ध्यनि से प्रवाहित हो रहा है-कलिकलुषित हदयों के कलि-
मल को थो रहा हैं । यही कारण है कि वतंमान भोतिक
युग में भी यहां समय समय पर श्रात्म-चचां सम्बन्धी
अने को छोटी-मोटी पुस्तकें प्रकाशन के रंग मंच पर अवतरित
होती रहती हैं । श्रीयुत केशरीमलजी भी ऐसी ही एक
नन्हीं-सी पुस्तिका धार्मिक संसार की सेवा में लेकर उप-
स्थित्त हुए हैं । पुस्तक का नाम भी यही रखा है, “झारम-
चिन्वन' अधात आत्मा का चिन्तन-अपना चिन्तन ।
उक्क गंभीर विषय पर लिखने के लिये जो अध्या-
र्मिकता जीवन में उतरी टुडे होनी चाहिये, वह लेखक
में नहीं मालूम होती । लेखक प्रत्यक्ष में हमें मिला है, वह
एक साघारण सुधारक मनोवृत्ति का नवयुवक है । अपनी
जेन समाज के प्रति उसके हृदय में सविशेष आदर हैं,
वह समाज में कुछ क्रान्ति-कुछ उन्नति देखना चाहता है |
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