जैन निबंध रत्नाबली भाग - २ | Jain Nibandh Ratnavali Vol. - Ii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
684
श्रेणी :
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No Information available about आदिनाथ नेमिनाथ उपाध्ये - Aadinath Neminath Upadhye
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(5५४ )
सुप्रसिद्ध वीतरागी सन््तो के ग्रन्थों मे प्रतिपादिति विषयों से भी
विरुद्ध पडते है ।
यहाँ म उन प्रथो कौ विस्तृत चर्चा नही करना चाहता
कारण वह् विषयान्तर हौ जायेगा तथापि च्रिवर्णाचार,
“सर्वोदय तीर्थ” आदि इसी कोटि के अनेक ग्रन्थ हैं। द्वादशाग
का मूल रूप पूर्ण अ-प्रकट है मात्र उनके आशिक ज्ञान के आधार
पर ही आचार्यो ने घट्खडागम-कषायपाहुड-गोम्मटसार महा-
पुराण-रत्नकरण्ड श्रावकाचार-त्रिलोकसार लब्धिसार मादि
ग्रन्थो का निर्माण किया है । आचाराग भादि अग भौर उत्पाद
पूर्वादि पूर्वों का सद्भाव नही है तो भी आज लघु विद्यानुवाद
आदि नाम से कल्पित ग्रन्थ प्रकाश मे भा रहे है। जिनका
विषय और प्रक्रिया स्पष्ट रूप से जन धर्म के मूल सिद्धातो के
प्रतिकूल है ।
जेनाचार्यो के नाम से शासन देवता पूजा के ग्रन्थ
ज्वालामभालनी कल्प, भेरव-पदुमावती कल्प आदि प्रकाशित हैं
जिनमे मात्र उनकी पूजा आदि ही जिनागम विरुद्ध नही, किन्तु
पूजा पद्धति भी हिसा पूरणं अभक्ष, अग्राह्य पदार्थोसे लिखी
गई है जैन प्रतिष्ठा पाठोके नाम पर गोवर-पूजा-मारती का
भी विधान लिखा गया ह ।
यह सब कपोल कल्पित है। अथवा जिनागम को श्रष्ट
करने का ही प्रयास उन लेखको द्वारा कल्पित जैनाचार्यों के
नाम पर किया गया है ।
स्व० प० मिलापचन्दजी क्टारिया ने अपने अनेक शोध
पूणं लेखो मे कतिपय विषयो का विष्लेषण करते हुये उनके
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