श्री स्वानुभव दर्पण सटीक | Shri Svanubhav Darpan Sateek

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Book Image : श्री स्वानुभव दर्पण सटीक  - Shri Svanubhav Darpan Sateek

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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নি श्रीस्वानुभवदपेण सटीक । (१७) ^ ৭৯ ৬৪ ৯ ৬ (र जड कक षाणादि मं जिनेद्र होनेकी शक्ति कदापि नरीह नि. श्चय नयकर जिनेदरने स्वगण विचारही मोक्ता दारा कहा है इसमें कभी ज्ांति नहीं है ॥ त्रत तप सबसे मसल गण मढ़ कहे शिव हतु। पर खात्म श्रनुभव ब- ना पच न शवपद लेतु ॥ ५६ ॥ हिंसा चोरी अस्य कृशील परिथह्‌ दनपचपापाका कुछ त्याग सो पंच अगुब्नत ओर दिग्बत देशत्रत अनथदंडत्याग ये तीन गणब्रत है। ओर सामायिक परधोपवास भोगोपभोग परिमाण अतिथि संविभा- गये चार शिक्षात्रत हैं ऐसे बारह त्रत ॥ ओर अन सन १ ऊनोदर २ ब्रतपरिसंख्या ३ रसपरित्याग ४ विव्यक्तशेयासन ५ कायक्षेश येह बाह्यतप च्नार प्राय स्थित १ विनय २ वैया २ स्वाध्याय ४ व्युत्सग ध्यान यह छः प्रकार अंतरंग तप ऐसे बारह प्रकार तप और पंच इंद्रेय छठवें मनका निरोध सो ६ प्र- कार इंद्रिय संपम ओर छः कायके स्थावर जंघम जीवोंकी रक्षा सो घ्राण संयम ओर ऊपर कहे पंच पापोंका सर्वथा त्याग सो पंच महात्रत ओर ईयोस টি न नमन वन न ननन-न न ननननन-ननननन न कनन न मनन नी चवथन्‍क्‍क्‍ कफ न्‍क्‍इ ा ााक्‍




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