श्री स्वानुभव दर्पण सटीक | Shri Svanubhav Darpan Sateek
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
58
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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श्रीस्वानुभवदपेण सटीक । (१७)
^ ৭৯ ৬৪
৯ ৬ (र जड कक
षाणादि मं जिनेद्र होनेकी शक्ति कदापि नरीह नि.
श्चय नयकर जिनेदरने स्वगण विचारही मोक्ता दारा
कहा है इसमें कभी ज्ांति नहीं है ॥
त्रत तप सबसे मसल गण मढ़ कहे
शिव हतु। पर खात्म श्रनुभव ब-
ना पच न शवपद लेतु ॥ ५६ ॥
हिंसा चोरी अस्य कृशील परिथह् दनपचपापाका
कुछ त्याग सो पंच अगुब्नत ओर दिग्बत देशत्रत
अनथदंडत्याग ये तीन गणब्रत है। ओर सामायिक
परधोपवास भोगोपभोग परिमाण अतिथि संविभा-
गये चार शिक्षात्रत हैं ऐसे बारह त्रत ॥ ओर अन
सन १ ऊनोदर २ ब्रतपरिसंख्या ३ रसपरित्याग ४
विव्यक्तशेयासन ५ कायक्षेश येह बाह्यतप च्नार प्राय
स्थित १ विनय २ वैया २ स्वाध्याय ४ व्युत्सग
ध्यान यह छः प्रकार अंतरंग तप ऐसे बारह प्रकार
तप और पंच इंद्रेय छठवें मनका निरोध सो ६ प्र-
कार इंद्रिय संपम ओर छः कायके स्थावर जंघम
जीवोंकी रक्षा सो घ्राण संयम ओर ऊपर कहे पंच
पापोंका सर्वथा त्याग सो पंच महात्रत ओर ईयोस
টি न नमन वन न ननन-न न ननननन-ननननन न कनन न मनन नी चवथन्क्क् कफ न्क्इ ा ााक्
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