मुद्रा एवं बैंकिंग | Mudra Avam Banking

Mudra Avam Banking by डॉ॰ एम॰ एल॰ सेठ - Dr. M. L. Seth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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14 | मुद्रा एवं बैकिगि (घ) पूजीवादी अधे-व्यवस्था में अतेक व्यवसायी सट्टा करने हेतु पूंजी को तरल रूप मे रखना चाहते हैं। प्रो० वेनज ने इसे सट्टा उद्देश्य (59०2 700196) बहा है ' इन सभो उहेश्यों की पूर्ति के लिए पूँजी को तरल रूप मे रखना आवश्यक होता है और मुद्रा इसके लिए सर्वोत्तम सांघन है । [ह ^ जैसा हमने ऊपर देखा, आधुनिक अर्थ-व्यवस्था मे मुद्रा महत्वपूर्ण कार्य सम्पन्न कृरती है । आर्थिक विकास के साथ साथ मुद्रा द्वारा किये गये कार्यों मे भी वृद्धि होती चली गयी है, परन्तु आज भी मुद्रा के मुख्य कार्य चार ही माने जाते है--विनिमय रा माध्यम, मूल्ये का भापक, स्थगित भुगतानों का मान और क्रय-शक्ति के सचय का साधन। मुद्रा ५ ये चारो मुख्य कार्य एक-दूसरे पर निर्भर हैं। मुद्रा के रूप मे सचय इसलिए किया जाता है कयोक्ति यह्‌ विनिमय का माध्यम है तथा स्थगित भुगतानों का मान है । इसी तरह विनिमय को माध्यम होने के कारण ही मुद्रा का लेखे की इवाई (एणा णी 1८८०७॥) था धूल्य मापक के रूप मे प्रयोग किया जाता है। मुद्रा फा स्वरूप (पिपा ग 1४०7९५) मुद्रा के स्वरूप की व्याख्या करते समय यह बताना आवश्यक है कि मुद्रा केवल साधन (0৩503) है, साप्य (लात) नही 1 जैसा विदित है. मनुप्य अपनी आवश्यक्ताआ की पूर्ति विभिन्न प्रकार की वस्तुओ णव सेवाओ द्वारा करता है ! वतमान प्रणाली वे अन्तग इन वस्तुओं एवं सेवाओ को केवल भुद्रा से ही खरीदा जा सकता है, अर्थात मुद्रा मनृष्य को आवश्यक्ताओं की सन्तुष्टि का एक साधन हे और इसी माध्यम से वह्‌ अपनी आवश्यकताओं की पूति करता है। मुद्रा का अपने आप मे कोई महत्व नही है, सुद्रा की टच्छा तो इसलिए की जाती है क्योंकि इसके द्वारा मानव अपनों आवश्यकताआ की सन्तुप्टि कर सकता है। इस प्रकार मुद्रा वेवल साधन ही है, साध्य नहीं। मुद्र! ओर चलां (1४107९४ 870 (एप्त) सण्धारण भाषा म मुद्रा तथा चलाथ में कोई अन्तर नहीं किया नाता है, परन्त अर्थशास्त्र मे इन शब्दों का अलग अदग अर्थों मे प्रयुक्त किया जाता है। “चलाथ शब्द से अभिप्राय केबल धात सिन লা विधिग्राह्म (1८९०1 (ला्तं८८) मुद्र7 से ही होता है অনাথ ক अत्तर्गत धतु [ एव कागजी मुद्रा हों सम्मिलित किया जा सत्ता है। इन्ह चलाथ इसलिए बहा जाता है, क्योकि कानूनी दृष्टिकोण से इन्ही का देश के भीतर प्रचलन हाता है । परन्तु 'मुद्रा' शब्द को अधिक विस्तृत अर्थ दिया गया है । मुद्रा मे धातु सिक्‍्बरे एवं कागजी मुद्रा त* सम्मिलित ह'ती ही हैं परन्तु इनके अतिरिक्त साखपतों आदि को भी इसम सम्मिलित किया जाता है। इस प्रकार “मुद्रा' शब्द का क्षेत्र 'घलार्थ' शब्द की तुलना में अधिक विस्तृत होता है। मुद्रा तथा चलार्थ के अन्तर को यहू कहकर और भी स्पष्ट किया जा सत्ता है कि सभी चलार्थ तो मुद्रा हाते हैं परन्तु सभी मुद्राओ को चलार्थ मही कहा ग सक्ता { /৯11 ০800600% 5 006४ ০ १॥ गा01९9 15 10 एणाशाए५) 1 मुद्रा का महत्व (17900॥11८०४ ण णप) आधुनिक अर्थ-व्यवस्था मे मुद्रा का महत्वपूर्ण स्थान हैं । मुद्रा के अभाव म आधुनिक अर्थ व्यवस्था प्रचलित ही नहीं हो सकती । अथशास्त की सभी शाखाओ--उपभोग, उत्पादन, विनिमय, वितरण तथा राज्य विषत-मे मुद्रा का महत्वपूर्ण स्थान है। जैसा डॉ० माशंल ने वहा है, “'मुद्रा बह धुरी है जिस पर अर्थ विज्ञान चक्कर लगाता है ।” वास्तव मे, मुद्रा मानव का एक महकपूर्ण आविष्कार है । प्रो० ऋाउथर (070% ऐश) के शब्दों से, “सुद्रा मानवीय आविप्कारों में सबसे महत्वपूण है।” ज्ञात की प्रत्येक शाखा म एक न एक महत्वपूर्ण आविष्कार होता है जैसे यन्वकला (76८11015) में चक्र, विज्ञान से अग्नि, राजनीति शास्त्र में मताधिकार। इसी प्रकार अर्यशास्त्र तथा मानव वे सामाजिक जीवन क ध्यापारिक पक्ष में मुद्रा एक आवश्यक आविब्कार है और इसी पर अन्य सभी बातें आधारित हैं । वतमान अर्थ व्यवस्था में मुद्दा का महस्व निम्नलिखित बातों से स्पष्ट किया जा सकता है




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