विमल विनोद | Vimal Binod
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
384
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(७)
जंगली हो! अरे सनातन धर्म तो छोड़ बैठे मगर लोक
रिवाजभी नहीं करते ! बढ़ा अफसोस है! ! आज
सारे लोगोंने जन्माष्टमी मनाई मगर तुम्हारे घश तो
मंधे ही नगाढ़ें होंगे !
झआारदाचंद्र- वाहजी वाह! जरा सोचो तो सही मृंधे লমাই
जन्माष्टमी मनानेवालोंके हैं या कि दमारे! देखो !
हमने तो खूब मजेसे दिनमें मी ( कई कर )- खाया
और दुकानसे आकर भी रातकों ( दश बजे.) खाकर
चुके हैं! और कृष्णाप्मीवाले विचारे सारा दिन तो
भूखे मरे ( या किसीने फलवार ) और आधी रातको
पत्थरोंके आमे मंदिरों माया फोड्ते फिरे.! फिर कहीं
खानेको और पीनेको मिखा.! ठम शोगेनि तो नकल
की, मगर हमारे तो असल ही ङृष्णका ` जन्म हुवा है
प० चंदुलाल- तो क्या इसका नाम कृष्णही रखोंगे? ( पासमें
खड़ी हुई “ मालछती.” अपने बाप शारदाचंद्रसे ) आपा-
जी.) मां कती कि रुष्ण अ्ठमीफी
कृष्ण ही नाम रखना है. ) | ॑
आरदाचंद्र-(पुत्रीसे) चल! चल.! बैठ चुपुकी होकें, हमारे घरमें
आजतक किसीनेभी ऐसे चे जैसा नाम रखा है! जो
हम रखे .! नाम रखनेका दिन तो आने दे! हमतो
इसका नाम “ विश्वभरनाय ” रखेंगे ! ( सुबह
होतेही शारदा[चंद्रके पोता हुआ यह सब साक संधिओं
में. मादूम होगया, कई छोगे बधाई ( मुबारक ) देनेको
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