विमल विनोद | Vimal Binod

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Vimal Binod by स्वामी दयानंद सरस्वती - Swami Dyanand Sarswati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(७) जंगली हो! अरे सनातन धर्म तो छोड़ बैठे मगर लोक रिवाजभी नहीं करते ! बढ़ा अफसोस है! ! आज सारे लोगोंने जन्माष्टमी मनाई मगर तुम्हारे घश तो मंधे ही नगाढ़ें होंगे ! झआारदाचंद्र- वाहजी वाह! जरा सोचो तो सही मृंधे লমাই जन्माष्टमी मनानेवालोंके हैं या कि दमारे! देखो ! हमने तो खूब मजेसे दिनमें मी ( कई कर )- खाया और दुकानसे आकर भी रातकों ( दश बजे.) खाकर चुके हैं! और कृष्णाप्मीवाले विचारे सारा दिन तो भूखे मरे ( या किसीने फलवार ) और आधी रातको पत्थरोंके आमे मंदिरों माया फोड्ते फिरे.! फिर कहीं खानेको और पीनेको मिखा.! ठम शोगेनि तो नकल की, मगर हमारे तो असल ही ङृष्णका ` जन्म हुवा है प० चंदुलाल- तो क्या इसका नाम कृष्णही रखोंगे? ( पासमें खड़ी हुई “ मालछती.” अपने बाप शारदाचंद्रसे ) आपा- जी.) मां कती कि रुष्ण अ्ठमीफी कृष्ण ही नाम रखना है. ) | ॑ आरदाचंद्र-(पुत्रीसे) चल! चल.! बैठ चुपुकी होकें, हमारे घरमें आजतक किसीनेभी ऐसे चे जैसा नाम रखा है! जो हम रखे .! नाम रखनेका दिन तो आने दे! हमतो इसका नाम “ विश्वभरनाय ” रखेंगे ! ( सुबह होतेही शारदा[चंद्रके पोता हुआ यह सब साक संधिओं में. मादूम होगया, कई छोगे बधाई ( मुबारक ) देनेको




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