सदाचारदर्शन | Sadachar Darshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
104
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१५ )
नहीं हुए थे मिन पर नातिका अस्तित्व अवलम्बित रहता था ।
कहना न होगा कि इस २० वीं शताब्दीने हिन्दुओंके हिन्दुलको
आमूढप्र दिला दिया है । जागाते, नागृतिके हछेके साथ स्वेच्छे-
चारताकी वह भयंकर बला आये जातिके सवेखकी निगल जानेका
मुहते देख रदी है निप्तकी छम्बोदरी पाप प्रतिमाकी ओर देखते न
वितामें पत्रके माव ठहरते है ओर न चिमे पतिधम समझनेका
साहस रह जाता है। यम, नियम, देवाचन, शान्तिपाठ, मृतत्रालि
आदिका उपदेश करनेवाल्ेकी आजकी वाबू दुनियां “४७०००
वर्ष पहडेका मुर्दां बोल उठा” की उपाधि देनेके लिए तयार हो
जाती है । हंट, कोट, बट, सृट साब सट आदृ फिनाइक चाह
काफो ढवंदर पाउडर सोढ़ा, बिस्कुट, आदिके विचित्र ढांचेम ढढी
हुईं नयी फेंसन, नयी रोसन, आज बढ़े बेगते हिन्दू समानका
काया पथ्ट करनेमें छग रही है। देश वात्तियोंके व्यामोहसे देशी
घूष दीप, देशी दवा दारू, देशी वेश भाषा, किंत्रहुना समस्त देंशी
व्यवहारधिधि आज खरे देशामिमानके संनाटेम छोगोंकों अप्तम्यताकी
सामग्री दिखायी देती है । ओर जमन, फ्रांत, जापान, अमेरिका
आदिकी बाहरी सफाई पर चट् हो देशका भ्रमुख जनता
समान बाह्याचार कैटानेके दिए महाप्रयत्न कर रही
है । बाष्यावारेके साय हय ताथ मानक्तिकं आचारो पर् भी
उत्कान्ति बाद जारी है | तभी तो 'पंटेलबिक ! जैसे समाज
विध्वं०कारी विंछ रह रहकर समानके सामने आते हैं ॥
तात्प यह है হি কান জী अधीनताकों आम कोई नहीं.
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