पागल | Pagal

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Pagal by शिवनाथ सिंह शांडिल्य - Shivnath Singh Shandilya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about शिवनाथ सिंह शांडिल्य - Shivnath Singh Shandilya

Add Infomation AboutShivnath Singh Shandilya

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
1:३१ ভিডি मेरे दोस्त मे दोस्त ! मे जो दिखाई देता हूँ वास्तव में वह नहीं हूँ । मेग प्रकट तो एक-मात्र खोल है जिसे में पहने हुए हूँ। यह खोल बडी होशियारी से बुना गया है | जो मुझे ठम्हारी विचारणा, ओर तुम्हें मेरी बेपरवाहियों से बेखबर रखता हैं। ख़ामोशी के पदों में छिप्रा हुआ है ओर हमेशा वही छिपा रहेगा । और न कोई इसे अनुभव कर सकेगा और न इस तक कोई पहुँच सकेगा | मेरे मित्र ! में यह नहीं कहता कि जो कुछ में कहेँ उसे सच मानो ओर जो कुछ में वोल , उसका समर्थन करो । क्योकि मेरी बातें मेरी नहीं बल्कि तेंर ही विचारों की प्रतिध्वनि है ! ओर मेरे कर्म तेरी इच्छाएं ह जो इस बनावटी लिबास से प्रकट हुई हे। जव तू कहता है कि हवा का बहाव पच्छिम की ओर है तो में कहता हूँ निस्सन्देह पच्छिम की ओर है, क्योंकि भँ तभे यद बताना नही चाहता कि इस वक्त मेरे दिल में हवा के बजाय समुद्र का ध्यान लहरें मार रहा है। तू मेरे विचारो की गहराई तक नदी पहुँच सकता और न में चाहता हूँ कि तू उनकी वह तक पहुँचे । क्योकि में समुद्र पर अकेला ही रहना चाहता हूँ । मेरे दोस्त ! जब तेरे लिए दिन होता है तब मेरे लिए रात होती है। लेकिन फिर भी में उस समय दोपहर की उन सुनहरी किरणों की बाते करता हूं जो पहाडो पर नृत्य करती है । और उस लाल वर छाया की बातें करता हूँ जो घाटियों पर आहिस्वा- ৬৬৬8




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now