जिन सूत्र | Jine Sutra(1976) Ac 5181

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Jine Sutra(1976) Ac 5181 by भगवान श्री रजनीश - Bhagwan Shri Rajneesh

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आचार्य श्री रजनीश ( ओशो ) - Acharya Shri Rajneesh (OSHO)

ओशो (मूल नाम रजनीश) (जन्मतः चंद्र मोहन जैन, ११ दिसम्बर १९३१ - १९ जनवरी १९९०), जिन्हें क्रमशः भगवान श्री रजनीश, ओशो रजनीश, या केवल रजनीश के नाम से जाना जाता है, एक भारतीय विचारक, धर्मगुरु और रजनीश आंदोलन के प्रणेता-नेता थे। अपने संपूर्ण जीवनकाल में आचार्य रजनीश को एक विवादास्पद रहस्यदर्शी, गुरु और आध्यात्मिक शिक्षक के रूप में देखा गया। वे धार्मिक रूढ़िवादिता के बहुत कठोर आलोचक थे, जिसकी वजह से वह बहुत ही जल्दी विवादित हो गए और ताउम्र विवादित ही रहे। १९६० के दशक में उन्होंने पूरे भारत में एक सार्वजनिक वक्ता के रूप में यात्रा की और वे समाजवाद, महात्मा गाँधी, और हिंदू धार्मिक रूढ़िवाद के प्रखर आलो

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० जिन-सुतर आखिरी आदमी है। अदम संसार की तरफ यात्रा है - धारा । जीसस संसार से बिपरीत यात्रा है - राधा । यहूदियों की कथाएं थोड़ी कठोर हैं । पूरब में लोग ज्यादा कोमल भाषा बोलते हैं । यहूदी कहते हैं, परमात्मा ने बहिष्कृत किया अदम को । हम ऐसा नहीं कहते । हम कहते हैं, स एकाकी न रेसे । यह अकेला था। एकोछहं बहुस्याम । उसने कहा, बहुत को रच । बहिष्कृत नही हज, अवतरित हुआ । भया, मर्जी से जाया । और इसे भी समझ लेना जरूरी है । तुम जहां हो, अपनी मर्जी से हो ) संसार में हो तो अपनी मर्जी से हो । तुम्हारे भीतर के परमात्मा ने यही चुना । कुछ परेशान होने की बात नही । बेमर्जी से तुम नहीं हो। अपने ही कारण हो । अपनी ही आकांक्षा से हो । और यह बड़े सौभाग्य की बात है कि बेमर्जी से नहीं हो । क्योकि जिस दिन चाहो, उसी दिन घर का द्वार खुला है, लौट आ सकते हो । जब तक चाहो, जा सकते हो दूर । जिस दित निर्णय करोगे, उसी दिन लौटता शुरू हो जाएगा । ब्राह्मण-संस्कृति परमात्मा के फैलाव की कथा ই । श्रमण-संस्कृति परमात्मा के घर लौटने की कथा है। और निश्चित ही, जो अकेले में थक गया था, वह भीड में भी थक ही जाएगा । तुमने अपने भीतर भी देखा ! यही होता है । बाजार में थक जाते हो, मदिर की आकांक्षा षदा होती है । भीड़ में ऊब जाते हो, बस्ती से ऊब जाते हो, हिमा- लय जाने की आकाक्षा पैदा होती है । हिमालथ पर जो बैठे हैं, एकात में, उनके मन में बाजार आकर्षेण निमित करता है] मैं कुछ मित्रो को ले कर कश्मीर की यात्रा पर था। कश्मीर के पहाड़ों में, झरनों में, वे बड़ा आनंद अनुभव कर रहे थे । डल झील पर उनके साथमे टरा था । हमारा जो माझी था, जब हम लौटने लगे तो वह कहने लगा, “' ऐसा आशी- बाँद दें कि एक दफा बबई देखनी है | ' * तू बबई देख के क्‍या करेगा ? / उसने कहा, ' यहां मन नहीं लगता । और बंबई बिना देखें मर गए तो एक आस रह जाएगी 1 जो मेरे साथ आए थे, वे बंबई के मित्र थे | वे चौंके । वे आए थे कश्मीर । वे आए थे हिमालय की शरण में । और जो हिमालय की शरण में पैदा हुआ था, वह बंबई आना चाह रहा था । तुम अगर अपने मन को भी पहचानोगे तो यही पाओगे । परमात्मा की कथा वस्तुतः तुम्हारी ही कथा है। कोई परमात्मा और तो नहीं । तुम कोई और तो नहीं । परमात्मा की कथा शुद्ध चेतना के स्वभाव की कथा है | ठीक ही कहते हैं वेद, ' ऊब गया, अकेला था । कहा, बहुत को रचू । उसने बहुत रचे । *




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