पद्मचरित में प्रतिपादन भारतीय संस्कृति | Padmcharit Men Pratipadan Bharatiy Sanskriti

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Padmcharit Men Pratipadan Bharatiy Sanskriti  by रमेशचन्द जैन -Rameshchand Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय १ पद्मचिरत का परिचय पदमचरित के कर्ता पद्मचरित के कर्ता आचार रविषेण हैं। इन्होंने अपने किसी संघ, गण- गच्छ का उल्लेख नहीं किया है और न स्थानादि की चर्चो भी की हैं। अपनी गुरु परम्परा के विषय में इन्होंने स्वयं लिखा है कि इन्द्र गुरु के शिष्य दिवाकर यति थे, उनके शिष्य अर्हद यति थे, उनके शिष्य लक्ष्मणसेन मुनि थे और उनका शिष्य मैं रविषेण हूँ । १० नाधूराम प्रेमी ने रविषेण के सेनान्‍त नाम से अनुमान लगाया है कि ये शायद सेन संघ के हों और इनकी गुरुपरम्परा के पूरे नाम इन्द्रसेन, दिवाकर सेन, अहंत्सेन और लक्ष्मण सेन हों । इनके निवास स्यान, माता-पिता आदि के विषय मे कोई जानकारी प्राप्त नदी होती है । पद्मचरित का समय पद्मचरित की रचना के विषय में रविधेण ने लिखा है--जिमसूर्य श्री वर्धमान जिनेन्द्र के मोक्ष जाने के बाद एक हजार दो सौ तीन वर्ष छः मास बीत जाने पर श्री पद्ममुनि (राम) का यह चरित लिखा गया है! इस प्रकार इसकी रचना ७३४ विक्रम (६६७ ई०) मे पूर्ण हुई । पद्मचरित की कथा वस्तु का आधार पद्मचरित की कथावस्तु के आधार के विषय में रविषेण ने लिखा है कि श्री वर्द्धमान जिनेन्द्र के द्वारा कहा हुआ यह अर्थ इन्द्रभूति नामक गणधर को प्राप्त हुंमा, अनन्तर धारणीपुत्र सुधर्मा को प्राप्त हुआ, अनन्तर प्रभव को प्राप्त हुआ, प्रमव के अनन्तर कोतिधर आचार्य को प्राप्त हुआ। कीतिधर आचार्य के अनन्तर अतनुत्तरवास्मी आचार्य को प्राप्त हुआ तथा अनुत्त रवाग्मी आचार्य का १. आसो दिल्‍्द्रगुरोदिवाकरयतिः दिष्योऽस्य चार्हृस्मुनि- । स्तस्माल्लक्ष्मणसेनसन्मुनिरद: शिष्यों रविस्तु स्मृतम्‌ ।। पदूम० १२३।१६८ २. नाथू्राम प्रेमी : जैन साहित्य और इतिहास, पु० ८८ । ३. द्विशताम्यधिेके समासहस्ने समतीते5ढचतुर्थवर्षयुक्ते । जिनभास्करवर्द्धमानसिद्धेश्वरितं पद्ममुनेरिद निबद्धम्‌ ॥| पदूम० १२३1१२८




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