कबीरसाहिबकी शब्दावली | Kabiirasaahibakiishabdaavalii

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महिमा লাম ঙ न जागी जाग से ध्यावे, न तपसी देह जरवाबे ॥६॥ গতি ক ~ सहज म ध्यान से पावै, सुरति का खेल जेहि आवे ॥७॥ सेहंगम नाद्‌ नहि भाहे, न बाजे संख सहना ॥८॥ निहच्छर जाप तहूं जाचै, उठत धून सुन्न से आपे ॥<॥ मेंदिर में दीप बहु बारी, नथन बिनु महं अंधियारो ॥९०॥ कबीरा देस है न्यारा, लखे कड नाम का प्यारा ॥१९॥ ॥ महिमा नास ॥ ॥ शब्द्‌ १॥ सुरतिया नाम से अटको ॥ टेक ॥ करम भरम জী লহ অভ, या फल से सटको । नाम के चूके पार न पेहा, जेसे कला नट की ॥१॥ जागत सावत सावत जागत, महिं परे चट“ सो । जेसे पपिहा स्वाति बन्द का, लागि रहै रट सी ॥२॥ भरम मेटकिया सिर के ऊपर, से मेटकी पटको। हम ता सपनी चाट चलत ह, लेगग कहे उलठी ५३॥ प्रीत पुरानी नई लगन है, या दिल में खटको । सौर नजर कदु आवत नाहं, नहिं माने हटकी ॥४॥ प्रेमकीडारी्में मन लागा, ज्ञान डार भरकी । जैसे सकलिता सिंध समानी, फेर नहीं पलटी ॥१५॥ गहू निज नाम खज हिरदे म, चोन्हि परे चट की । कहि कीर सुना भाइ साधथो, फेर नहीं भटको ॥६॥ | + साठ, खटक ।




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