सुकुल की बीबी | Sukul Kii Biibii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
114
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पं सूर्यकान्त त्रिपाठी - Pt. Surykant Tripathi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सुकुल की बीबी ११
था । कल्पना में सजने के तरह-तरह के सूट याद आए, पर,
वास्तव में, दो मैले कत्तं थे । बड़ा गुस्सा लगा, प्रकाशकों पर ।
कहा, नीच हैं, लेखकों की क़द्र नहीं करते | उठ कर मुंशीज्ञी
के कमरे में गया, उनकी रेशमी चादर उठा लाया। क्रायदे
से गले में डाल कर देखा, फत्रती है या नहीं | जीने से आहट
नहीं मिल रही थी, देर तक कान लगाए बैठा रहा। बालों
की याद आई--उकस न गए हों | जलद-जल्द आइना
उठाया। एक बार रेह देखा, कई बार आँखें सामने
रेल-रेलकर । फिर शीशा बिस्तरे के नीचे दवा दिया।
शोकी 'गेटिंग मैरेड' सामने करके रख दी। डिक्शनरी
की सहायता से पढ़ रहा था, डिक्शनरी किताबों के अंदर
छिपा दो । फिर तन कर गंभीर मुद्रा से बैठा ।
आगंतुका को दूसरी मंजिल पर आना था। ज़ीना
गेट से दूर था ।
फिर भी देर हो रही थी । उठ कर कुछ क़दम बढ़ा कर
देखा, मेरे बचपन के मित्र मिस्टर सुकुल आ रहे थे ।
बड़ा बुरा लगा, यद्यपि कई साल बाद की मुलाक़ात
थी। कृत्रिम हँसी से होंठ रँग कर उनका हाथ पकड़ा, ओर
लाकर उन्हें बिस्तरे पर बैठाला ।
बैठने के साथ ही सुकुल ने कहा--“श्रीमतीजी গাই
हुई हैं. ।”
मेरी रूखी ज़मीन पर आषाढ़ का पहला दोंगरा गिरा ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...