गौतम चरित्र | Gautam Charitra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
116
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रथम अधिकार । १३
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अन्चुमति त्याग अर उरिष्ट त्याग इन ग्यारह' प्रतिज्ञाओंका
पालन करना चाहिए । अहिसा अणुत्रत, सत्य अणुब्रत, अचौये
अणुद्रत, ब्रह्मचयं अणुत्रत, परिह परिमाण अणुत्रत ये पांच
प्रकारके अणुब्बत कहलाते हैं | श्रावकोंको उचित है कि इनका
भी पालन करे । ँ
दिग्ग्रत, देशब्रत, और अनर्थद्ण्ड विरति त्रत थे तीन गुण-
ब्रत हैं । श्रावकाचारको जाननेवाले श्राचक इन का उत्तम रीति
से पालन करें| छः प्रकारके जीवॉपर कृपा करना, पंचेन्द्रियोंको
घशमें करना एवं रौद्र ध्यान तथा आते ध्यानके त्याग कर दैने
को सामायिक कहते हं । सामायिकका पालन नियमित रूपसे
श्राव्कोके दिए अनिवार्यं होता रै । अष्टमो, चौदशके হিলি
प्रोषधोपवास अत्यन्त आवश्यक है। प्रोषधोपवासके भी तीन
भेद् माने गये हैं--उत्तम मध्यम और जघन्य। केसर चन्दन
आदि पदार्थोके छेपनको भोग कहते हे ओर वस्त्राभूषणादिको
उपभोग । इन दोनोंकी संख्या नियत कर लेनी चाहिए।
इसको भोगोपभोगपरिमाण त्रत कहते हें । श्रावकोंके लिए
यंह भी आवश्यक है। शास्त्रदान, भौपधिदान, अभयदान
और आहारदान ये चार प्रकारके दान हैं। प्रत्येक गृहस्थको
चाहिए कि वे अपनी शक्तिके अनुसार इन दानोंकोी गरही त्यागी
मुनियोंकी दे | वाहय मौर आश्यन्तरके भेद्से शुद्ध तपश्चरण
दो प्रकारके होते हैं | इन्हें तत्व ज्ञानियोंको अपने कमं नष्ट
करनेके लिए. उपभोगमें छाना चाहिए ।!
इस प्रकारके धर्मोपदेशको सुनकर महाराज श्रेणिकको,
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