Gautam Charitra by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रथम अधिकार । १३ 43७८४१९०४९७०७ #% 07% /९५५ ०५ 4९७५ ४ ५५०९५०९३ এ লা এ তি সি ছি এ পি বস সিসি পা ५ #७ 2५७४६ ४५.१९ ०5 /7% চি শী পা তা পপি পি ও এপ अन्चुमति त्याग अर उरिष्ट त्याग इन ग्यारह' प्रतिज्ञाओंका पालन करना चाहिए । अहिसा अणुत्रत, सत्य अणुब्रत, अचौये अणुद्रत, ब्रह्मचयं अणुत्रत, परिह परिमाण अणुत्रत ये पांच प्रकारके अणुब्बत कहलाते हैं | श्रावकोंको उचित है कि इनका भी पालन करे । ँ दिग्ग्रत, देशब्रत, और अनर्थद्‌ण्ड विरति त्रत थे तीन गुण- ब्रत हैं । श्रावकाचारको जाननेवाले श्राचक इन का उत्तम रीति से पालन करें| छः प्रकारके जीवॉपर कृपा करना, पंचेन्द्रियोंको घशमें करना एवं रौद्र ध्यान तथा आते ध्यानके त्याग कर दैने को सामायिक कहते हं । सामायिकका पालन नियमित रूपसे श्राव्कोके दिए अनिवार्यं होता रै । अष्टमो, चौदशके হিলি प्रोषधोपवास अत्यन्त आवश्यक है। प्रोषधोपवासके भी तीन भेद्‌ माने गये हैं--उत्तम मध्यम और जघन्य। केसर चन्दन आदि पदार्थोके छेपनको भोग कहते हे ओर वस्त्राभूषणादिको उपभोग । इन दोनोंकी संख्या नियत कर लेनी चाहिए। इसको भोगोपभोगपरिमाण त्रत कहते हें । श्रावकोंके लिए यंह भी आवश्यक है। शास्त्रदान, भौपधिदान, अभयदान और आहारदान ये चार प्रकारके दान हैं। प्रत्येक गृहस्थको चाहिए कि वे अपनी शक्तिके अनुसार इन दानोंकोी गरही त्यागी मुनियोंकी दे | वाहय मौर आश्यन्तरके भेद्से शुद्ध तपश्चरण दो प्रकारके होते हैं | इन्हें तत्व ज्ञानियोंको अपने कमं नष्ट करनेके लिए. उपभोगमें छाना चाहिए ।! इस प्रकारके धर्मोपदेशको सुनकर महाराज श्रेणिकको,




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