मध्यकालीन नारी भावना के परिप्रेक्ष्य में संत कवयित्रियों का योगदान | Madhya Kalin Nari Bhavana Ke Pariprekshya Men Sant Kavayitriyon Ka Yogadan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
311
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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बलि के अवसर पर पति द्वारा पत्नी से मन्त्रोच्चारण के लिये कहा जाता है।'
स्त्रियाँ विद्याध्ययन, अध्यापन, पौरोहित्य, गार्हस्थिक कार्यों के अतिरिक्त वैद्यकी
ओर न्याय का कार्य भी करती थी। स्त्रियो दारा वैद्यकशास्त्र कें अध्ययन का
उल्लेख यजुर्वेद मे है! न्याय के सदर्भं मे ऋग्वेद के प्रथम म० मे एक उल्लेख
आया है, जिसमें राजा के प्रति रानी का कथन है कि, मैं आपसे न्यन नहीं हूँ,
जैसे आप पुरूषो के न्यायाधीश है वैसे ही मँ स्त्रियो का न्याय करने वाली हूँ और
जैसे पहले राजा महाराजाओ की स्त्री प्रजास्थ स्त्रियो की न्याय करने वाली हुई
वैसी मैं भी होऊं। पहले की रानियो के उल्लेख से इसकी दीर्घकालीन परम्परा
का बोध होता हैं। ऋग्वेद के द्वितीय मडल मे इसी तरह का उल्लेख आया है कि
जिस देश ओर नगर मँ विदुषी स्त्री, स्त्रयो का न्याय करने वाली हो उस देश
और नगर मे दिन रात निर्भय होते ह विशेषकर चोर आदि के भय से रहित
सुखपूर्वक रात्रि व्यतीत होती है रानी दुष्टा स्त्रियो को मारकर अन्य स्त्रियो की
रक्षा भी करती थी।' वे शान्ति के समय समृद्धि मे योगदान देती थी र युद्ध मे
विजय दिलाने का कार्य करती ्थी। ऋग्वेद के दशम म० मे हम इन्द्रसेना
मुद्गलानी का आख्यान पाते है, जिसने अपने पति मुद्गल की सहायता के लिये
स्वय रथ का सचालन किया ओर वीरतापूर्वक युद्ध करते हुये हजारो ग्शुओंँं को
जीत लिया।' इसी प्रकार ऋग्वेद के ही प्रथम म० में हम रानी विश्पला का
पोजीशन ऑफ विमेन इन एनाशियेन्ट इन्डिया पृ०- २१८
यजुर्वेद ११/४८
ऋग्वेद १/१२६/७
ऋग्वेद २/२७/१४
ऋग्वेद २/३०/८
ऋग्वेद १०/१०२/२-६
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