श्री नरसिंहाराव सरकार के कार्यकाल में केंद्र राज्य सम्बन्ध | Sri Narsinharao Sarkar Ke Karyakal Me Kendra Rajya Sambandh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
29 MB
कुल पष्ठ :
318
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ऐतिहासिक पृष्ठभूमि 8
के प्रशासन में भारतीय जनता का सहयोग प्राप्त करने का पहली बार प्रयत्न किया गया ।
यह प्रवृत्ति ठीक दिशा में थी । 1909 के मिन्दो मर्त सुधारों ने दो तरह से नौकरशाही
की त्रुटियों के शमन का प्रयत्न किया । एक तो तत्कालीन प्रशासन व्यवस्था का और
अधिक विकेन्द्रीत करके यथा स्थानीय स्वशासन को प्रोत्साहन देकर और प्रान्तीय सरकारों
को अधिक व्यापक अधिकार देकर, दूसरे विधान परिषदों के अधिकार बढ़ाकार और उनमें
भारतीयों का प्रतिनिधित्व बढ़ाकर । 1909 के अधिनियम का स्वरूप मुख्यतः विकासवादी था
। उसमे उस सिद्धान्त की प्रयुक्ति का प्रसार था । `भारत के राष्ट्रीयं आन्दोलन की ओर
से 1909 से पूर्व की अवधि में जो नरम राजनीजिक मांग पेश की गई थी उन्हे पूरा
करने का यह हल्का सा प्रयत्न था । लेकिन जब इसकी परख हुई ते भ्रम निवारण ही
हुआ । अधिनियम म जितने विकेन््रीकरण को स्थान दिया धा वह ब्रिटिश भारतीय
नौकरशाही के स्वरूप को उस हद तक संशोधित करने के लिये अपर्याप्त था जिस हद तक
की जनमत चाहता था । प्रशासन में अधिक भाग प्राप्त करने का आन्दोलन जरा भी धीमा
नही पड़ा; उसी प्रकार चलता रहा ।
कुछ समय बाद देश विदेश में अनेक ऐसे घटना विकास हुये जिनसे की भारतीय
ध्येय के अनुकूल स्थिति उत्पन्न हो गई । इनमें सबसे महत्वपूर्ण प्रथम महायुद्ध का छिड़
जाना था | ब्रिटेन युद्ध प्रयतां मे भारत का सहयोग प्राप्त करने का उत्सुकं था । फलतः
ब्रिटिश सरकार ने भारत के प्रति अपनी नई नीति की घोषणा की | इसके अन्तर्गत
स्वशासनकारी संस्थाओं के कमिक विकास की दृष्टि से प्रशासन की प्रत्यक शाखा में
भारतीयों को अधिकाधिक सम्मिलित करना था । इस घोषणा के ठीक बाद ही तत्कालीन
ब्रिटिश मंत्री मंटिग्यू भारत आये और गवर्नर जनरल लार्ड चैम्सफोर्ड के परामर्श से उन्होने
भारत के संवैधानिक सुधारों के सम्बन्ध में एक रिपोर्ट तैयार की । जो मांन्टफोर्ड रिपोर्ट
_ कहलाती है, इस रिपोर्ट के आधार पर ब्रिटिश संसद ने एक नया अधिनियम - 1919 का
अधिनियम परित किया ।
यह अधिनियम मोन्टफोडं रिपो मे स्थापित सिद्धान्तो पर आधारित था । इसके दो
मुख्य लक्षण थे । एक तो यह कि प्रशासन के विभिन्न क्षत्रं मेँ केन्द्रीय ओर प्रान्तीय
सरकार के बीच अधिकारो के विभाजन दारा अधिकतम विकेन्द्रीकरण की व्यवस्था की गई
धी ओर दूसरे प्रान्तं मे दैधशासन का श्रीगणेश किया गया - राज्यपाल के ब्रिटिश
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