भारतीय आधुनिक शिक्षा | Bharatiy Adhunik Shiksha
श्रेणी : शिक्षा / Education
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
419
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पीखने का ग्रोत : भीतर का खज़ाना
पर भी पुनर्विचार करना आवश्यक है, ऐसी आयोग की
राय है। सर्टिफिकेट उन दक्षताओं के लिए हो जो
योग्यता प्राप्त करने के दौरान सीखी गई हों । ये उनके
कार्य के स्थान के लिए आवश्यकं हो । इन दक्षताओं की
पहचान बनाना न केवल कार्य क्षेत्र में बल्कि शिक्षा
व्यवस्था तथा विश्वविद्यालय में भी आवश्यक है। इस
तरह की योजनाएं बनाने के लिए अनेक देशों में चिंतन
चल रहा है। यूरोपियन कमीशन ने अपने “व्हाइट
पेपर' में 'पर्सनल स्किल कार्ड' की अनुशंसा की है जो
व्यक्ति की प्राप्त की गई योग्यता एवं दक्षता का पहचान
पत्र होगा। यह सर्टिफिकेट सामान्य शिक्षा व्यवस्था के
सर्टिफिकेट के अतिरिक्त होगा। इसप्रकार कार्य क्षेत्र के
वातावरण एवं शिक्षा के बीच अधिक तालमेल बैठ
सकता है। ये दक्षता के सर्टिफिकेट उन्हें भी मिल
सकते हैं जिन्होंने औपचारिक शिक्षा व्यवस्था के सर्टिफिकेट
प्राप्त नहीं किए हैं। ।
योग्यताओं एवं दक्षताओं को सीखने तथा सर्टिफिकेट
प्राप्त करने से ही जुड़ा है अध्यापक एवं अध्यापक
संबंधित कौशल का प्र/न | इस समस्या का आयोग ने
विस्तार से विवेचन किया है जिसमें अध्यापकों के लिए
नर् क्षितिज ढूँढ़ने का प्रयास है। इक्कीसवीं सदी के
अध्यापक को परिवर्तन के एजेंट की विशेष भूमिका
निभानी है । अध्यापक को नई पीढ़ी के मस्तिष्कों में नई
चारित्रिक विशेषताओं को ढालना है। यह एक अत्यंत
गंभीर जिम्मेदारी है। यह जिम्मेदारी ऐसी पृष्ठभूमि में
बहुत बढ़ जाती है जब नई सदी के परिवर्तन राष्ट्रीयता
से विश्वबंधुत्त की ओर, जातीय एवं सांस्कृतिक पूर्वाग्रहों
से सहनशीलता, समझ एवं बहुलवाद की ओर, अराजकता
से लोकतंत्र तथा उच्च तकनीक से ओत-प्रोत विश्व की
ओर बढ़ रहे हैं। नई पीढ़ी का काफी कुछ दाव पर है
तथा चयन के नैतिक मूल्य जीवनपर्यत महत्वपूर्ण रहेंगे ।
अत: अध्यापक को उन्हें नई सदी में रहने लायक
बनाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका अदा करनी है।
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शिक्षा व्यवस्था की प्रोन्नति तो अध्यापकों की.
नियुक्ति, प्रशिक्षण, सामाजिक प्रतिष्ठा एवं कार्य करने
के वातावरण पर निर्भर है। उन्हे पर्याप्त ज्ञान एवं
कौशल, व्यक्तिगत विशेषताओं, व्यावसायिक संभावनाओं
एवं प्रेरणा की आवश्यकता है । तभी वे उन आशाओं को
पूरा कर सकेंगे जो उनसे अपेक्षित हैं। इन्हीं मुद्दों को
प्राथमिक एवं माध्यमिक स्तर के विद्यालय के शिक्षकों के
संदर्भ में उठा कर उनका हल ढूंढ़ने का प्रयास किया
गया है। अंत में यह भी कहा गया है कि निःचय हीं
शिक्षकों की गुणवत्ता शिक्षण प्रक्रिया तथा शिक्षण
विषय-वस्तु को सुधारने के लिए कोई सरल उत्तर नहीं
है। अध्यापक अपने कार्य के लिए प्रशंसा चाहते हैं चाहे
वे जिन परिस्थितियों में कार्य कर रहे हैं और जिस
प्रतिष्ठा में रह रहे हैं। उन्हें वे उपकरण प्रदान किए
जाएं ताकि वे अपनी अनेक भूमिकाएं निभा सकें । तभी
विद्यार्थी एवं समाज यह आशा कर सकते हैं कि अध्यापक
अपना कर्तव्य पूर्ण लगन एवं सशक्त उत्तरदायित्व की
भावना से निभाएंगे।
अध्यापक को निम्न एवं कठिन परिस्थिति मे
काम करना होगा जिसमें वैज्ञानिक तकनीकी विकास
बहुत मदद करेंगे तथा बदलते सामाजिक एवं सांस्कृतिक
परिदृश्य में उनका उत्तरदायित्व और बढ़ाएंगे।
व्यावसायिक रूप से उन्हें नए कौशल, नई दक्षताएं तथा
सतत परिवर्तित होती हुई संचार तकनीकी के प्रभाव के
लिए तैयारी करनी होगी । व्यवसाय के स्तर पर विचारे `
का आदान-प्रदान, मेल-जोल जो कि योजनाबद्ध एव
सेवाकालीन कार्यक्रमों से भिन्न हो, अध्यापकों की अधिक
सहायता करेगे एवं मार्गदर्शन देगे । देश के अंदर एवं
बाहर शिक्षा संस्थाओं के आपसी संबंध 21 वीं सदी के
शिक्षा के विकास में अहम भूमिका निभाएंगे। यही नहीं
जो संस्थाएं शैक्षिक उपलब्धि में आगे होंगी उनका
दायित्व बाकी पिछड़ी संस्थाओं के प्रति अधिक होगा।
उन्हें आगे आकर शिक्षा का प्रसार ही सुनिश्चित नहीं
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