जैन सिध्दान्त भाग 1 | Jainsiddhantadarpan Volume-1

Jainsiddhantadarpan Volume-1 by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जेनसिड्ान्त इ ~ क जनसिदधान्त । १५ ----------------------------------------------- श्रीवीतरागाय नमः जेनसिद्धाग्तदपण তব, प्रथम अधिकार { द्रव्यसामान्यनिरूपण ) मङ्गकाचरण, नत्वा वीरमिनेनं सव सुक्तिमागेनेतारम्‌ | वाटप्रयोधनारथं नैनं सिद्धान्तदपेणं व्ष्ये ॥ द्रब्यका सामान्य लक्षण प्रवौचार्येनि इसप्रकार किया है । गाथा--दवदि दषिस्सदि दविद जं सन्भावे विशवपलाए । ব অহ আলী पोगर धम्माधम्मं च कालं च १ तिक्काले ज॑ सत्त बहदि उपादवयधुवत्तेहिं॥ शुणपरावसदावं अणादि सिद्धं सुतं हे द्व्य २ १ भर्थीत्‌ जो सखमभाव अथवा विभाव प्यीयरूप परिणमे है, परिणमेगा, भौर परिण- म्या सो आकाश) -जीव, पुद्रक, धर्म, अधर्म, जीर कार भेदरूप द्रव्य है । अथवा २ जो तीन कांठमें उत्पाद, व्यय, प्रीव्य, स्वरूपसतकरिसहित होवे उसे द्रव्य कहते हैं, तथा ३ जो गुणपर्यायसहित भनादि सिद्ध होवे उसे द्वव्य कहते हैं इस प्रकार दब्यके तीन लक्षण कहे हैं, उनमेंसे पहछा ठक्षण द्वब्य शब्दकी व्युत्पत्तिकी मुख्यता लेकर कहा है. इस छक्षणमें खमावपर्याय और विभावपर्याय ये दो पद आये हैं उ- नको स्पष्ट करनेंके लिये प्रथमही परयोयसामान्यकरा क्षण कहते हैं | द्यम अंशकल्पनाकों पर्याय कहते हैं. उस भंश कत्यनाके दो भेद हैं एक देशांशकल्पना दूसरी गुणांशकल्पना | देशशकल्नाको द्रव्यपर्याय कहते हैं यदि कोई यहां ऐसी शंका करे कि, जब शुर्णोका समुदाय है सोही दब्य है गुणोंते मित्र कोई दब्य पदार्थ नहीं है इस- डिये द्रव्यपर्योयमी कोई पदार्थ नहीं हो सकता | ( समाधान ) यद्यपि गुणोंसे मिन्र दृब्य कोई पदार्थ नहीं है पर्तु समस्त गुणोंक्ने पिण्डकों देश कहते हैं और ' प्रसेकुण समस्त . देशमें व्यापक होता है इस कारण देशक एक अंशम समस्त गुणोंका सद्भाव है एसी




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