आचारांग चयनिका | Aacharang Chayanika

Aacharang Chayanika by महोपाध्याय विनयसागर - Mahopadhyay Vinaysagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विश्वासं को पूवं जन्म के ज्ञान पर आश्रित किया है। ऐसा लगता है किं महावीर-युग में व्यक्ति को पूर्वजन्म की स्मृति में उतारने की क्रिया वतमान थी ओर यह आध्यात्मिक उत्थान क प्रति जागृति का सबल माध्यम था । जन्मो-जन्मों में स्व-अस्तित्व के होने मे विश्वास करने वाला ही आचारांग की हृष्टि में आत्मा को मानने वाला होता है । जन्मो-जन्मों पर विश्वास से देश-काल में तथा पुद्गलात्मक लोक में विश्वास उत्पन्न होता है। इसी से मन-वचन-काय की क्रियाओं और उनसे उत्पन्न प्रभावों को स्वीकार किया जाता है। आाचारांग का कहना है कि जो मनुष्य पूर्वजन्म और पुनर्जेन्म को समभ लेता है वह ही व्यक्ति आत्मवादी, लोकबादी, कर्मवादी और क्रियावादी कहा गया है (3) । इसी भ्राधार पर समाज में नैतिक- भ्राध्यात्मिक मूल्यों का भवन खड़ा किया जा सकता है और सामाजिक उत्थान को वास्तविक बनाया जा सकता है। क्रियाश्रों की विपरीतता : आ्राचारांग इस बात पर खेद व्यक्त करता है कि मनुष्य के ढ्वारा मन-वचन-काय की क्रिया की सही दिशा समझी हुई नहीं है । इसीलिए उनसे उत्पन्न कुप्रभावों के कारण वह थका देने वाले एक जन्म से दूसरे जन्म में चलता जाता है और अनेक प्रकार की योनियों में सुखों-दु:खों का अनुभव करता रहता है (4)। मनुष्य की क्रियाश्रों के प्रयोजनों का विश्लेषण करते हुए आचारांग का कहना है कि मनुष्य के हरा मन-बचन-काय की क्रियाएँ जिन प्रयोजनों से की जाती हैं वे हैं: (1) वर्तमान जीवन की रक्षा के प्रयोजन से, (४) प्रशंसा, आदर तथा पूजा पाने के प्रयोजन से, (1) भावी- जन्म की उपधेड़-बुन के कारण, वर्तमान में मरण-भय के कारण तथा परम शान्ति प्राप्त करने तथा दुःखों को दूर करने के प्रयोजन से (5, 6) । जिसने क्रियाश्रों के इतने शुरुआत जान लिए हैं उसने ही चयनिका | [ भां




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