महापुरुषों की जीवनगाथायें | Mahapurusho Ki Jeevangathaye
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
142
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)० रामायण ४ १९
म्पश्बा राजदार। सीता. आमोदपुर्ण राज-सीधो को निवासिनी
सीता ने पति के सभ को अन्य आमोदो से अधिक चुखकर सम३।
रम क। साथ न छोडा और अनुण ८६१५ भी भर। बधु का
विथोग कसे सह सकते थे। वे भी उनके साय ही ५1.
` वे गहन कान्तारूराजि पार कर भोदावरीतीरवर्ती रप-
जीय पर>्चव्टी नामक स्थान में पण्णकुटी बनाकर निवास फरन
यगे । राम और लक््मण दोनों ही मूषवा करन चले जाते और
कुछ कान््द-मूछल-फ७ भी- सभ्रह कर छाते। इस अकार'ः निवास
करते हुए कुछ काल न्यतीत हो जाने पर, एक दिन वहाँ ७क।चि-
पर्ति- राक्षसराज रावण की बहिन शूपंणखा अ।ई.। अरप्य में
स्नण्छत्द विचरुण करते करते उसे एक दित राजीव-लोचन 'र।भे
दृष्टियत हुए। उत्तके रूप-लावण्य पर भुप्व वह् उनसे श्रणय
की भिक्षा नमन रणी] क्प राम एक-पत्नीक्नतधारी थे,
पुरुषोत्तम थे. इसण्य राक्षसी को अभिलाषा पूर्ण करने में
असमर्थाथे.। उसके हृदय में अतिशोध को ज्वाछ। भड़क उठी7
সঃ হী यह अपने भाई राक्षस-राज रावण के पास पहुंचीःऔऔर
उसे सीता के अश्नतिम खावण्य को बात कही व हे
५१०७ हरचं कं] ५५. करनं से सम को सर्वाधिकं समि
सन्त पुर्न के रूप में रु्यवाति हो गई थी। वे मर्त्थों में सबसे
अधिक बलिण्ठ थे। क्षसो ओर ९८५] तय। किसी अन्म. जीन
घारी में उनसे सोहा रेन को सि नह् थी। इसलिये राक्षस-
राज रावण को सीत। का हरण करनं के लिये अपनी रफ्षेसी
माव। का आश्रय लेचा पडा। उसने एक अच्य राक्षस कों सहा:
या भ्रहदण की। वह राक्षस अत्यच्त मायावी था । उसने एक
सुन्दर सवर्ण-मृथ क। रूप घ।रण किया ओर राम की मर्णकुटी के
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