महापुरुषों की जीवनगाथायें | Mahapurusho Ki Jeevangathaye

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Mahapurusho Ki Jeevangathaye by स्वामी विवेकानंद - Swami Vivekanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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० रामायण ४ १९ म्पश्बा राजदार। सीता. आमोदपुर्ण राज-सीधो को निवासिनी सीता ने पति के सभ को अन्य आमोदो से अधिक चुखकर सम३। रम क। साथ न छोडा और अनुण ८६१५ भी भर। बधु का विथोग कसे सह सकते थे। वे भी उनके साय ही ५1. ` वे गहन कान्तारूराजि पार कर भोदावरीतीरवर्ती रप- जीय पर>्चव्टी नामक स्थान में पण्णकुटी बनाकर निवास फरन यगे । राम और लक््मण दोनों ही मूषवा करन चले जाते और कुछ कान्‍्द-मूछल-फ७ भी- सभ्रह कर छाते। इस अकार'ः निवास करते हुए कुछ काल न्यतीत हो जाने पर, एक दिन वहाँ ७क।चि- पर्ति- राक्षसराज रावण की बहिन शूपंणखा अ।ई.। अरप्य में स्नण्छत्द विचरुण करते करते उसे एक दित राजीव-लोचन 'र।भे दृष्टियत हुए। उत्तके रूप-लावण्य पर भुप्व वह्‌ उनसे श्रणय की भिक्षा नमन रणी] क्प राम एक-पत्नीक्नतधारी थे, पुरुषोत्तम थे. इसण्य राक्षसी को अभिलाषा पूर्ण करने में असमर्थाथे.। उसके हृदय में अतिशोध को ज्वाछ। भड़क उठी7 সঃ হী यह अपने भाई राक्षस-राज रावण के पास पहुंचीःऔऔर उसे सीता के अश्नतिम खावण्य को बात कही व हे ५१०७ हरचं कं] ५५. करनं से सम को सर्वाधिकं समि सन्त पुर्न के रूप में रु्यवाति हो गई थी। वे मर्त्थों में सबसे अधिक बलिण्ठ थे। क्षसो ओर ९८५] तय। किसी अन्म. जीन घारी में उनसे सोहा रेन को सि नह्‌ थी। इसलिये राक्षस- राज रावण को सीत। का हरण करनं के लिये अपनी रफ्षेसी माव। का आश्रय लेचा पडा। उसने एक अच्य राक्षस कों सहा: या भ्रहदण की। वह राक्षस अत्यच्त मायावी था । उसने एक सुन्दर सवर्ण-मृथ क। रूप घ।रण किया ओर राम की मर्णकुटी के




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