भातखंडे स्मृति ग्रन्थ | Bhatkhande Smriti Granth

Bhatkhande Smriti Granth by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नम दुख न लय का यह प्रयास पण्डित भातखण्डे की सम्पूर्ण गाथा का दर्पण भले ही न हो, परन्तु मध्य प्रदेश में, विशेषकर ग्वालियर में किये हुए उनके प्रयोगों की एक झलक तो अवद्य है। और इसी झलक से प्रभावित हो कर हमारे मन में आत्म विश्वास तथा गोरव की भावना जागृत होगी। संगीत चाहे मन्दिर-मजारो का हो, राज-दरवारों का हूं, छोटो-बडी महफिल-जल्सो का हो, अखिल भारतीय सम्मेलनो का हो अयवा गणिकाओ का हो--समाज की सलिनता नष्ट करने वाला ही होना चाहिए। उस पर खर्च किये जाने वाले पाई-पाई का समूचा लाभ आम जनता को हो।”' पण्डित भातखण्डे के इन विचारों मे केवल व्यावहारिक चतुरता ही नहीं हे, ज्वलन्त देशभक्ति का यह नमूना है। विभिन्न क्षेत्रो मे कार्य करने वाले हमारे हर नवयुवक मे इन्ही विचारों की भाज आवद्यकता है। प्रस्तुत स्मृति ग्रत्थ इस दिशा में उपयोगी सिद्ध हो--यही हृदूगत मै प० भातखण्डे के चरणों मे अर्पित करता हूँ । गौतम शर्सा खाद्य मन्त्री, मध्य प्रदेण अध्यक्ष भोपाल भातयतण्डे जताब्दी समारोह समिति, दिनाक १५ जून १९६६ ग्वालियर




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