आनंद मठ भाग 1 | Aanand Math Bhaag-1
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
195
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चोथा परिच्छेद् १४.
घरगाढता ओर क्षुधा-तृष्णाकौ मारते वाह्य ज्ञान शल्य हो, आन्तरिक चेतन्यसे
भरकर कलत्याणोको अन्तरिक्षम स्वर्गीय गान सुनाई देने लगा, मानों कोई
भा रहा है
“हरे मुरारे, मधुकेटभारे !
गोपाल गोविन्द मुकुन्द शौरे !
हरे मुरारे मधुकेठभारे |”?
कल्याणी लड़कपनसे द्वी पुराणोंमें सनती आयी थी कि देवर्षिं नारद वौणा
हाथमें ,लिये हरिनामका कौतेन करते, गगनपथमे विचरण करते हुए,भुवन-
भ्रमण किया करते हैं। यही कत्पना उसके मनमें जाग बेठो । उसे मालूम
होने लगा मानो शुभ्र शरीर, श॒ुञ्र केश, धुध्र-वसनः महा रारीर, महामुनी
নীলা हाथमें लिये, चन्द्रकोकमें प्रदीत्त नीछाकाशमें गा रहे हैं ।
न्रे सुरारे मधुकेटभारे 1”
कमश. गीत शौर पास सुनाई देने लगा । उसे साफ सुनाई दिया कि कोई
गा रहा है. हरे) मुरारे 1, मधुक्रेटभारे |]
क्रमशः गाना और भी निकट--और भो स्यष्ट माल्म पढने र्गा, मानो
कोई गाता है ।
«हरे ] मुरारे ) मधघुकेटभारे !”
अन्तमें कल्याणीके सामने वनस्थलीसे भी उस गीतकी अ्रति््वन गूँज
डठौ-
«हरे ! मुरारे 1 मधुकेदभारे 1
कल्याणीने आँखे खोलीं। उसने क्षोण प्रकाशमें देखा, कि লী হাস
शरोर, शुभश्र-केश, श॒ुश्र-वसत ऋषि-सूत्ति उसके सामने खड़ी है | अन्यमतस्क
कल्याणीने श्रद्धा-सक्ति-युक्त उन्हें प्रणाम करना चाहा, पर प्रणाम न कर
सकौ । सिर झुकाते दी बेहोश होकर गिर पढ़ी ।
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