समाधि मरणोत्साह दीपक | Samadhi Marnotsaha Deepak

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Book Image : समाधि मरणोत्साह दीपक  - Samadhi Marnotsaha Deepak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ समाधिमरणोत्साइदीपक तपरचर्या और धामिक काय : सकलकीतिने अपने तपस्वी जीवनमें अनेक तपों एवं कठोर व्रतोक्रा आचरण किया था। उनके उन तपोंके कुछ नाम इस प्रकार हैं:-- रत्नावली, सिंहविक्रम, सवेतोभद्र, महासवंतोभद्र, मुक्ताबली, विमान- पंक्ति, मेरुपक्ति और नन्दीश्वरपंक्ति ° श्रादि । एकान्तर उपवास श्रादि ता उनके लिए बहुत साधारण हो गये थे । उनके धार्मिक कार्योपर दृष्टिपात करनेपर ज्ञात होता है कि उन्होंने गुजरातमें विहार कर वहाँकी धार्मिक शिथिलताका दूर किया था। मुख्यतः संवत्‌्कों लिखने श्रथवा पढ़नेकी जान पड़ती है। सकलकीतिरासमें जो दीक्षाका संवत्‌ दिया गया है वह॒ “चउद उनसत्तरि'ॐ स्यानपर चउद त्रसरि” लिखा या पढ़ा गया जान पड़ता है। संबत्‌के १४६९ होनेपर यह स्पष्ट हो जाता है कि दीक्षा २६ वर्षकी अ्रवस्थामे हुई है; क्योकि जन्मसंवत्‌ १४४३ है । यदि जन्मका तथा दीक्षाका महीना मालूमहो भ्रौर उनकी टदृष्टिसे दीक्षाके समय सं० १४७० प्रागया हो तो उक्त पाठ चद सत्तर भी हो सकता) भौर হুল तरह तीनो उल्लेखोकी संगति ठीक वैठ सकती है । श्रब रही १८ व्पंकी মজার दीक्षाक्ी बातत, वह मुनि-दीक्षाकी बात नही, बल्कि संयम लेनेकी बात है ओर वह सकलसंयम न होकर देशसंयम है, जिसे लेकर सकलकीति गुरु पद्मनन्दिके पास प्राय: श्राउ वर्ष तक विद्याध्ययन करते रहे हैं, आवश्यक विद्याकी पूरांतापर उन्हे दीक्षा दी गई है, ओर ऐस। बहुथा होता है। दीक्षा उनकी भट्टारकीय प्रथाके अनुसार हो हुई है, जिसमें वे सबस्त्र न्द जान पड़ते है। जब उन्हें आचायंपद प्राप्त हों गया और वे श्रपने विपयमें स्वतंत्र हो गये, तबसे उन्होने नम्न-दिगम्बरवेष धारणा शिया श्रीर उसी रूपमें २२ 5प॑ तक विहार किया है । अन्यथा दीक्षाके समयसे ही यदि वे नग्त हो गये होते तो नग्नरूपमें विहारकाल २२ वर्षका न होकर ३० वर्षका होता । --सम्पादक १ इन ब्रतोका स्वरूप हरिवंशपुराणादिसे जाना जा सकता है ।




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