कलम रौ उस्ताद | Kalam Rau Ustad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५५ रे मजरी कीवी । रेलवाई বী चाकरी चढचौ । मोटर रौ रीडसै मे आख्या फाडी । फ्टिकासणी रै गाव हवालदारपणी अर नाणै रै ठिकाण कामदारपणों ई करबौ। प्रिसली इंडिया अर बाबर कॉनिकल है छापा हृद-भात घोटा घुमाया। इकवारी हुनर री हठोटी सीखी । মরে-মার रा धाटा भाष्या, समज्ञ वापरणा रै समच मेक जगमगतौ उगास उणरै हीये नित-हमेस झबूका भरतो के गोरा री गुलामी रा पेंखडा तो आपरै हाथा ईं तोड वगावणा पडसी । देसी रजवाड़ा अर परदेसी गोरा रे दोवड़े दावणा, फंगत आप-आपर सुख सायत री वात सोचणौ तौ मोरौ जुलम है । इम मरम रौ मलम होवता ई অন आपरे पमा चालण सार मारम भिटग्यौ । मजल री सोय ब्हैगी। पण मजल ताह पुगावण वौ वौ मारग अणूतौ ऊनड, भवघौ अर मूढा पायरथोडौ । पण गुलामा नँ तौ इणी भववै मारग चात्या आजादी री मजल थं लागे। दूजी कोई डाडी नी ही । ओक ई मारग अर ओक ई मजल ही। अर उण मजल ताई पूगण सारू उण जनकवि री जुगवाणी में फगत भेक ई भुछावण ही आजादी रै बाग नै जूझार पसीनो पाजौ रे सिर साटै जद मतीरा ई दोरा हाथ लागे तद आजादी रौती वैडी सपनी ई कटे पडचौ हौ 1 इण खातर उस्ताद री तो पैली अर छेहती वकार ही--सिर सोदे 'रो साख सपूता, पूरी किण विध होसी सूता 1 गकी-गकी सू जैदी वकार दर वकार सुण्या आजादी रा सूरमा कद सचढ्ा रैवता लौही सू नदिया कर राती-मूरा नर न्हावै @ काती पण मारवाड ২ বীন दावणा इण अववै मारग सिरेपोत दालणौ ठ्दधात दूभर हो, इण खातर पगा ने हेवा करण सारू मारवाड र काठ ब्यावर अर अजमेर रो रणखेत की ढाल हो। सन्‌ १६२८ दे २६ रैपाहै उस्ताद अजमेर री गद्या आजादी रौ वावियौ वजायी। उठ बेई घायल बेक्ठ होय धमाल मचावण मडधा । गौरा रौ जाधण उक्टण लागौ । वा सरमा साष्ट जैछ री सीली ओवरिया তাল दूजो वासौ ई क्सौ हो ! जेछ अर दमन रे आक्स सूरमा হী ঈন্তী লহ वेधण लागौ | पोसादढटा री गुणकारी भणाई छा इचा उस्ताद रं ग्यान री तिमणा वत्ती चेतन व्ही 1 गान रं उजास टाव अधारौ नी लोप । अर कादटै-वोठं अथार यवा कढई नी नी सूज ) नी आजादी रो मारग अर नी आजादी री मजल। ग्यान है आखरा यढ आतम-सगतौ नौ साचरे । अद्धा रौ धिधकती जोवरिया र परताप ई उस्ताद रौ अतस ग्यान री ऊची उडाणा भरनौ। वो दिन-दिन हर घकले सूरज की न की वत्तौ आजाद होवण दूकौ | वालेजा री भणाई विचै उस्ताद ने जेछा रै लेवडा राज-




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