औरंगज़ेबकालीन मुग़ल अमीर - वर्ग | Aurangjebkalin Mughal Amir - Varg
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
396
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भूमिका 15
विक रूप से अ्रपनों शक्ति एवं आय के धाघार पर शासक बग में झात हैं। दस
बारण विशेषत झरगजेव के काल कै भ्रध्ययन वे लिए, उन लागा के मंच्य जो
अधिवारी सात्र थे तथा जो इसके साथ ठी इस वात का भी दावा करते थे
कि साम्राज्य के प्रशासन मे उनका मटत्व है 1 000 जा-पल कौ विभाजन रेषा
अपनाना लाभप्रन सममा गयाहै।
मुगल श्रमीर वग के श्राकार प्रवार एवं सरचना वी कुछ सीमा तक बिवे-
चना वी जा चुवी है किन्तु दुभाग्यवय्य यह न तो वह्त ही है और न ही
कुछ विषया मे त्रुटि मुक्त 1 विशेषत , विभिन्न काता मे अमीरों वी सख्या स
सम्बध प्रदना का स्पष्टीकरण झ्रावश्यक है वि कसि दरस उनङी सस्याम
वि हुई तथा भ्रमीर-वग की आय एवं झान्तरिक ससक्ति पर उस बद्धि का क्या
प्रभाव पडा ? जहा तक आन्तरिक ससित वा प्रइन है, हमे उन वर्गों एव जातिया
जिनमे मुगल भ्रमीर-वग निर्मित था--विश्येप रूप स विद्ियों (और उनके
वहाजी) एवं भारतीयों व इसी प्रकार दा मुख्य घाभिवः समुटाया--मुसतमानों
एवं हिंदुआ के झ्नुयायिया--की स्थिति को घ्यान मे रखत हुए अ्रध्ययत करना
है। इन प्रश्ता वा--विगेषकर श्रन्तिम दो प्र्ना का उत्तर दत সন कैवल वत
मानि मनोभाव वरन वतमान चेताविकार मी बुरे परामगदाता सिदध हागे। इसी-
लिए इस पुस्तक म॑ इन प्रश्ना का उत्तर समकालीन व्यक्तिया द्वारा दिय गये
विवर्णा एव तय्या वे ग्राधार पर तया श्रौरगजेव बे समय वे! 1 000 व उसवे
ऊपर ब मनसव मै सभी श्मीरों वे जीवन से सम्बाँित सभी स्लोता स एकत्र
कौ ममी जानवारी के झ्राघार पर देते की चप्टा को गयो है। इस जानकारी को
जब सालह्यिकों रूप म प्रस्तुत किया गया ता अ्रतेक राचवः सत्य सामन आये
जो प्रयथा इस विपय के विद्यार्थी के सम्मुख कटापि नही आ सकते थे। साथ
ही यह भो ध्यान में रखना चाहिए कि सास्यिकी प्रस्तुतीकरण की ग्रपनी स्वय
की दुयलनाएँ भी हैं । जिस जानकारी पर यह आधारित है उसे न बेवत व्यापद
ही होना चाहिए बरन तुतना वे विए उब भी यह जानयारी एक साधारण रूप
मे परिवतित को जाय ता उसवे नि विभिन प्रनियघ मी सदव भावनं हं)
निशगालह दस प्रवार के विधय मे साख्यिक भ्रस्तुतीयरण उतना अ्विक शुद्ध नही
अ सकता कि उस ऐवरिलासिक साश्य से ऑतिस शाह वे रूप मे प्रस्नुतं
पर #िया जाय लकिन इसवे बावजूद अपने एतिहासिक खाता या आधुनिक एेनि-
हागिक प्रयकारा द्वारा प्रतिपालित सामा-याक्रणा वो सोकन सम इसबी महत्ता
के साथन््साव शाघ के भतिरिवत मार्गों वे बारे मे सुमाव दने के तिए भी इसको
उपाधिता म इद्र नने विया जा सदना!
नं भुगत भ्रमीर-वग॒ वा, जमा फि सववितित है. मनसवतारी प्रथा वे ढाँच से
हो समद्धित किया गया। 'मनसर' प्रवा के अतेक मुख्य तत्त्वो की झ्राधुनिर ोथ
२
User Reviews
No Reviews | Add Yours...