आत्मज्ञान प्रवेशिका | Aatam Gyan Praveshika

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Aatam Gyan Praveshika by केशरविजय गणि- Kesharvijay Gani

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१३) सब निकम्मा हो जाता है। इस तरह न पहले आत्मा माननेसे समाधान होता है और न कर्म माननेहीसे । पहले अंडा या सुर्गी ? पहले पुरुष या জী? पहलछे दिन या रात * जैसे इन प्रश्नोंके उत्तरमें हम यह नही कह सकते हैं कि, पहले यह ओर पीछे वह इसी तरह हम यह भी नहीं बता सकते है कि, पहले कर्म ओर पीछे आत्मा । महांन पुरुषोंका कथन है कि, यदि तुम इस प्रश्चको हछ करनेन अपना समय छगाओगे तो तुम्हारा जीवन व्यथ चरा जायगा, ओर पवा इट न होगा। तो भी इतनी बात तुम समझ सकते हो कि, तुम बंधे हुए हो, तुम्हारा सोचा कुछ भी नहीं हो सकता | अज्ञान्ति तुमको वार्‌ वार्‌ हैरान करती है । इसको तुम दूर कर सकते हो । इसके लिए परिश्रम करनेसे शान्ति मिरू सकती है | जब ऐसा है तब यदि पहले कौन ই ? इस प्रश्नको तुम हल न कर सकोगे तो भी, स्वरणसे जैसे मिट्टी अछग की जा सकती है, वैसे ही तुम आत्मा को क्मसे छुडा सकोगे । सोना जत्र खानसे निकलता है तब वह मिद्ठीसे सना रहता है; कोई यह नहीं बता सकता है कि, मिट्टी उसके साथ कब लगी, मगर अश्निमें तपाकर वह शुद्धकर लिया जाता है। वैसे ही तपश्चरणद्वारा तुम आत्माको भी इस्त कर्मो- पाधिते अछ्ग कर सकते हो । इससे यह समझमे आता है कि, पहले कर्म है या आत्मा




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