प्रेम सुधा [भाग - 1] | Prem Sudha [Bhag - 1]

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Book Image : प्रेम सुधा  [भाग - 1] - Prem Sudha [Bhag - 1]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साध्य ओर साधन शाक्षाधार और विश्वास के आधार पर हम उन्हे जानते और मानते है। जानता ज्ञानका गुण है और उसे मानना दशेन का गुण है । हमारे लिए यह .शास्त्राधार और दर्शनाधार माननीय दै अल्पज्ञानियों के लिए ही शात्ष आधार भूत होते है. केवलज्ञानी तो शाखातीत होते है। वस्तुतः, वे तौ स््रयंही হ্যাজ জন হীন है। वे शाब्य के कायज्ञ नहीं होते। उनका पूर्ण विकसित जीवनस्तर शाखा से आगे बढ़ा हुआ होता है । शान्न उनके लिए श्राधारभूत होते है जिनमे शाखो मे वर्णित पूरा ज्ञान नदी देता । जो पूणे ज्ञानी है उन्हे शासत्र की आवश्यकता नहीं होती। जो व्यक्ति जिस शाशञ्त्र मे वर्णित घातों से अधिक ज्ञान रखता है उसे शाखाधार की क्या आवश्यकता है ? जिसमे अल्पज्ञान होता है उसके लिए शाखत्र की आवश्यकता होती है। जिसने ज्ञानावरणीय कम को पूर्ण क्षय कर केवलज्ञान प्राप्त कर लिया है उसके लिए शाखो की कोड आवश्यकता नहीं है परन्तु जिसने ज्ञानावरणीय का क्षय नहीं किया किन्तु क्षयोप- शम किया है उसके लिए शास्त्रौके श्राधार कीः. श्चाव्रश्यकता होती है। : विश्व के प्राणियों मे ज्ञान का तीरतम्य पाया जाता है । सव व्यक्ति चाहते हुए भी समान विद्धान्‌ और ज्ञानवान्‌ नहीं बन सक्ते द । सव मनुष्य चाहत है किं हम ज्ञानी बने, ज्ञाने प्राप्त करें ओर ज्ञान की दौड़ मे किसी से पीछे न रहे । ऐसा चाहते हुंए भी' * 4




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