सृष्टि मीमांसा | Srishti Meemansa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६११) पुरक प्रकाशन का यह अये हमारे লিখ अभी प्रारम्मिक ही है। अतः मविष्य में पुस्तक में एक भी अशुद्धि न रहे, इस কায को ह कमी म भूलेंगे । पुस्तक का विषय लेखक ने यवाशलि सक्धिप्त एव सरल दनान का प्रयत्न किया ह, सिरि भी कं शब्द्‌ इस विषय के सनथा अनमिक् पाचक षी सममे न भए रेता सवामाविक है, प्र-ठु देते जदिल पप्मिपिक श-द विषय समम में बाघा भी उपस्थित करते हों तब भी उनसे स उकताकर विषय के ज्ञाता द्वारा पुस्तक का विषय सममने का विशेष प्रयप्न करना चाहिये ' इस पुस्तक के प्रशशान मे शाह शातिलाक्त रथच द्‌ बस्बई की के ( षिरदवाडा वाते) की भोर से २५०) रऽ फो भिक सहायता पाप्ठ हई है। एददये आय श्री को श्ोटिश- ध-याद है। पुष्वफ़ पर षटीमत रको गदि, स्रि भी पुल के खचे की शेप शकस को यदि किसी उदार गृह्ये सद्दायता मित्र गई दो पुरतक भेंट के रुप में दी জা इसके बाद “आत्म स्वरुप निचार” नामक द्विदो पुस्तक इस प्र थ माक्षा फे द॒वीय पुष्प के रूप में प्रकट करने वी दमारो इच्छा है; और उसवे बाल क्रमशः पटद्रव्य स्यरूप, पुदूगल भोमाप्ा। जैन दर्शेन का फमवाद, হি তত प्रस्तुत प्रगयमाला के पुष्प के रूप में प्रकट फरने के हम इच्छुक है । हमारी इख शुभ मावना फ पूण द्ोने में शासनदेव सद्ायता करें तथा अद्धाधान्‌ श्रीमठ घण ॥ फी सद्दायता के द्वारा हमें उत्साद्दी बनायें यही शुभेच्छा ४ प्रकाश




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