आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब का सचित्र इतिहास | Aarya Pratinidhi Sabha Panjab Ka Sachitra Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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€( घ ? उसी दिन से मानो ऋषि की वेदि पर बलिदान हो गया | जलन्धरं के राजा विक्रमलिंह और सदार सुचेतर्तिद ने बम्वई तथा देहली में ऋषि का दो बार साक्षात्कार किया और रइंत-पम्ुदाय की ओह हे ऋषि को पंजाब में पदापंण करने का नि्भन्‍्त्रण दे आये | १९. माच १९७७ को पंजाब के माग जागे | झु॒तुद्री और विपाट के मैदानों में एक नये विश्वामित्र का झुभागमन हुआ । नदियाँ झु गई । | ऋषि का शक्ट हो कर सारे पंजाब की यात्रा कर स्थान स्थान को सनाथ करने लगा | इस सनाथता का सौभाग्य सब से पूवं अछखधारी के निवास-नगर लुधियाने को प्राप्त हुआ वहाँ रामशरण नाम का ब्राह्मण इंसाई हो चुका था | वह ईसाई स्कूछ में पढ़ाता था ऋषि ने उसे आय घम में वापस लिया। ऋषि को उपदेश-गंगा में नर-नारी स्नान कर रहे थे । एक दिन देवियाँ अकेली आईं और उन्होने उपदेश कौ याचना की । ऋषि ने अपना अभ्प्रस्त उत्तर दे दिया:--पुरुष पुरुषों को ही उपदेश कर सकते हैं । तुम्हं उपदेश चाहिए तो अपने पतियों को भेजो । सनन्‍्यासी का उपदेश तुम्हें साक्षात्‌ नहीं, उन्हीं के द्वारा पहुँच सकता है । १९ शएपरिरु को क्षि राहौर प्धारे । पिरे बावरी साहेष, फिर ब्राह्म मन्दिर, फिर रलचन्द्‌ के बाग जौर अन्त में डा० रहीमखाँ की कोठी में डेरा हुआ | व्याख्यान का प्रबन्ध भी डेरे के साथ ही किया जाता था । परित्राजक मानो हवा के घोड़े पर सवार था| उसे टिक कर कौन बैठने देता था ? जिस के यहाँ ठहरे, उसी के मत का खण्डन कर दिया | पूछा




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