आर्य प्रतिनिधि सभा पंजाब का सचित्र इतिहास | Aarya Pratinidhi Sabha Panjab Ka Sachitra Itihas
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
33 MB
कुल पष्ठ :
690
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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उसी दिन से मानो ऋषि की वेदि पर बलिदान हो गया | जलन्धरं के
राजा विक्रमलिंह और सदार सुचेतर्तिद ने बम्वई तथा देहली में ऋषि का
दो बार साक्षात्कार किया और रइंत-पम्ुदाय की ओह हे ऋषि को
पंजाब में पदापंण करने का नि्भन््त्रण दे आये |
१९. माच १९७७ को पंजाब के माग जागे | झु॒तुद्री और विपाट
के मैदानों में एक नये विश्वामित्र का झुभागमन हुआ । नदियाँ झु गई । |
ऋषि का शक्ट हो कर सारे पंजाब की यात्रा कर स्थान स्थान को
सनाथ करने लगा | इस सनाथता का सौभाग्य सब से
पूवं अछखधारी के निवास-नगर लुधियाने को प्राप्त हुआ
वहाँ रामशरण नाम का ब्राह्मण इंसाई हो चुका था | वह
ईसाई स्कूछ में पढ़ाता था ऋषि ने उसे आय घम में वापस लिया।
ऋषि को उपदेश-गंगा में नर-नारी स्नान कर रहे थे । एक दिन देवियाँ
अकेली आईं और उन्होने उपदेश कौ याचना की । ऋषि ने अपना अभ्प्रस्त
उत्तर दे दिया:--पुरुष पुरुषों को ही उपदेश कर सकते हैं । तुम्हं उपदेश
चाहिए तो अपने पतियों को भेजो । सनन््यासी का उपदेश तुम्हें साक्षात्
नहीं, उन्हीं के द्वारा पहुँच सकता है ।
१९ शएपरिरु को क्षि राहौर प्धारे । पिरे बावरी साहेष, फिर
ब्राह्म मन्दिर, फिर रलचन्द् के बाग जौर अन्त में डा० रहीमखाँ की कोठी
में डेरा हुआ | व्याख्यान का प्रबन्ध भी डेरे के साथ ही किया जाता था ।
परित्राजक मानो हवा के घोड़े पर सवार था| उसे टिक कर कौन बैठने
देता था ? जिस के यहाँ ठहरे, उसी के मत का खण्डन कर दिया | पूछा
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